सोमवार, 17 अगस्त 2009

हवन से खेती


हवन से खेती

हालाँकि मुझे टोने- टोटके मैं कभी भी विश्वास नहीं रहा लेकिन सोलन जिले के बसाल गाँव के सुरेन्द्र ठाकुर को उस रोज जब मैंने खेत किनारे शाम के समय हवन करते हुए देखा तो पल भर के लिए मेरे रोंगटे खड़े हो गए थे यह सोच कर कि कोई तांत्रिक तंत्र साधना कर रहा है. उस वक्त तो मारे डर के मैं वहाँ से खिसक लिया लेकिन अगले रोज जब वोह मुझे मिले तो मैंने पूछ ही लिया कि कल क्या हो रहा था..? ठाकुर शायद मेरी जिज्ञासा भांप गए थे लिहाज़ा तपाक से बोले डरने की कोई बात नहीं है मैं तो फसलों के लिए हवन कर रहा था. मुझे लगा ठाकुर साहब मुझे टाल रहे हैं लेकिन इसी बात की चर्चा जब मैंने उनके दोस्त के एन शर्मा से की तो मुझे भी विश्वास नहीं हुआ.

सुरेन्द्र ठाकुर ने ठीक कहा था वोह वास्तव मैं ही उन्नत फसल के लिए हवन कर रहे थे. जी हाँ यह सच है …जिस तरह आप अपने घर और ग्रहों की शान्ति के लिए हवन करते हैं ठीक उसी तरह अब फसलों के लिए भी हवन करके उन्हें उन्नत और रोगमुक्त बनाया जा सकता है. खास तौर पर सोलन जिले मैं करीब दो सौ उन्नत किस्सान -बागवान इस तकनीक को अपनाए हुए हैं और रोज सुरेन्द्र ठाकुर की तरह सुबह शाम खेतों मैं हवन करते हैं. बागवानी विभाग से बतौर उप निदेशक सेवानिवृत हुए के एन शर्मा ने ही इस तकनीक को इन लोगों तक पहुँचाया है. बतौर शर्मा यह कोई नयी तकनीक नहीं है बल्कि सदियों पहले हमारे पूर्वज इसका इस्तेमाल करते रहे हैं बीच मैं यह लुप्त हो गयी और अब इसे पुनः प्रचलन मैं लाया जा रहा है. इसके लिए एक खास तरह की हवन सामग्री इस्तेमाल की जाती है जिसमें 16 किस्म की जडी-बूटियाँ डलती हैं. इनमें गुग्गल, नीम,लेमन ग्रास, कपूर बेल. सफेदा रत्न जोत और चंदन प्रमुख है.

इन सभी जडी-बूटियों से बनी इस सामग्री का हवन खेतों मैं करने से जो सबसे बड़ा लाभ देखने मैं सामने आया है वोह यह की इससे फसल पर तीन तरह का असर पड़ा है. पहला इस हवन का धुआं फसलों पर कीटों को फटकने नहीं देता दूसरे यदि पहले से कीटों की बजह से बीमारी लगी है तो उसे नष्ट करता है और इन दो कारणों से तीसरा अहम् प्रभाव यह पड़ता है की एक समय के बाद खेत मैं उगने वाली फसल पूरी तरह जैविक हो जाती है क्योंकि इस हवन के बाद किसी भी किस्म के रासायनिक कीटनाशक का छिडकाव नहीं करना पड़ता. वैसे इसकी कीमत के चलते भी यह हवन दूसरे कीटनाशकों पर भारी पड़ रहा है. आम तौर पर यदि एक एकड़ मैं किसी भी सब्जी या फलों की फसल पर रासायनिक कीटनाशकों की छिडकाव करनी हो तो चार-पाँच हज़ार का खर्च बैठता है. यहाँ तक की मेटासिड,रीगरऔर थायोडान जैसे सस्ते कीटनाशक भी प्रति छिडकाव 300 रूपये से कम मैं नहीं पड़ते जबकि इस हवन सामग्री का दाम 120 रूपये है और एक एकड़ मैं आधा किलो से एक छिडकाव पूरण हो जाता है. इस तरह से जहाँ जैविक फसल प्राप्त होती है वहीं किस्सान-बागवान महंगे कीटनाशकों से भी बच जाता है.

लेकिन इस हवन के लिए इसे जलाने का समय काफी अहम् है. के.एन शर्मा के अनुसार यह हवन सुबह सूर्योदय से कुछ पहले और शाम सूर्य अस्त के ठीक बाद करना ही हितकर है. इसके पीछे वैज्ञानिक आधार यह है की फसलों पर कीटों का हमला ठीक इसी समय होता है. कीट-पतंगे दिन मैं सूर्य की तपिश के चलते खेतों मैं हमला नहीं करते और अपना काम सूरज उगने और छिपने के बाद करते हैं…ऐसे मैं ठीक इसी समय हवन करने से उनको खेत पर हमला करने से रोका जा सकता है और एक अरसे के बाद वोह फ़िर कभी उस खेत का रूख नहीं करते जहाँ इस तरह का हवन होता है. हालाँकि खुले मैं इस हवन का सामूहिक तौर पर किया जाना भी बांछित है ताकि पूरे तौर पर लाभ पाया जा सके यानि यदि आसपास के सभी खेतों मैं इसे एकसाथ किया जाए तो खुले खेतों मैं भी इसका लाभा संवरण किया जा सकता है ,लेकिन पलीहाऊस मैं खेती करने वालों के लिए तो यह हवन किसी वरदान से कम नहीं है. क्योंकि पालीहाऊस मैं आप इसका धुआं बाहर जाने से रोक सकते हैं लिहाज़ा कम मात्र मैं हवन जलाने पर भी इसका अधिक लाभ लिया जा सकता है.

पलीहाऊस मैं महीने मैं दो बार हवन करने से भी उत्साहित परिणाम सामने आए हैं जबकि खुले खेत मैं एक माह मैं कम से कम चार बार हवन जरूरी है. सोलन और उसके आसपास इस वक्त करीब एक लाख वर्ग मीटर मैं पालीहाऊस हैं और अधिकाँश इस अनूठी तकनीक के सस्ते निवेश से जैविक सब्जी और दूसरी फसलें प्राप्त कर चोखी कमाई कर रहे हैं. एम् कॉम करके फूलों की खेती मैं उतरे नीरज के अनुसार इस तकनीक ने उनकी दुनिया ही बदल दी है. नीरज के अनुसार शुरू मैं उन्हें यह सब बकवास लगा लेकिन जब कई लोगों को इस तरह करते देखा तो सोचा प्रयोग करने मैं क्या हर्ज़ है लिहाज़ा उन्होंने भी अपने दो पलीहूसओं मैं यह हवन शुरू किया . हालाँकि पूरे नतीजे मिलने मैं साल लग गया लेकिन जो नतीजे सामने आए वोह चौंकाने वाले थे.

अन्य जगहों की तुलना मैं इन पाली हाऊस मैं उगे फूल न सिर्फ़ बेहतर थे बल्कि ज्यादा मात्रा मैं भी उगे थे..जबकि रासायनिक छिडकाव वाले पलीहाऊस मैं फूलों के आकार और उनके झड़ने की समस्या पहले जैसी थी. नीरज अब अपने तमाम पालीहौसों मैं इसी हवन का इस्तेमाल कर रहे हैं. हँसते हुए वोह कहते हैं इससे मुझे दोहरा फायदा हुआ है मेरा कारोबार सालाना तीन लाख से चार लाख पहुँच गया है, लागत भी कम हुयी है और सबसे बड़ी बात कि मैं इस उम्र मैं ही आध्यात्मिक हो गया हूँ जिसका सीधा फर्क मेरी दिनचर्या पर पड़ा है.

चूंकि हवन का समय तये है लिहाज़ा सुबह सबेरे उठने के स्वास्थ्यवर्धक लाभ स्वतः प्राप्त हो रहे हैं. नीरज की ही तरह कुठार गाँव की बन्ती देवी भी हवन से खेती के फायदे गिनाते नहीं थकतीं. उधान विभाग से क़र्ज़ लेकर बन्ती देवी ने अपनी दो बीघा जमीन पर पीली शिमला मिर्च की खेती शुरू की थी लेकिन फसल के अच्छे दाम मिलने के बाबजूद उतना नफा नहीं हो पा रह था क्योंकि फसल की देखभाल के लिए प्रयुक्त होने वाले कीटनाशकों पर बहुत पैसा खर्चना पड़ता था…पर हवन ने तो मेरी दुनिया ही बदल दी…बन्ती बताती हैं…..इससे मेरा उत्पादन खर्च आधा हो गया है और अब मुझे इस बात की चिंता नहीं सताती कि कि कहीं कर्ज़ की किश्त न टूट जाए. फिलहाल यह हवन राजस्थान मैं उत्पादित हो रहा है और वहां की एक संस्था इसका निर्माण करती है लेकिन माहिरों के अनुसार चूंकि इसमें पड़ने वाली अधिकाँश जडी-बूटियाँ हमारे यहाँ भी पाई जाती हैं लिहाज़ा यदि किसान चाहें तो इसे ख़ुद भी त्यार कर सकते हैं.

उधान विभाग के पूर्व उपनिदेशक के एन शर्मा और उधान प्रसार अधिकारी रत्तन सिंह के अनुसार यदि आप इस हवन के साथ प्राचीन वेदों मैं वर्णित अग्निहोत्र का भी प्रयोग करें तो मामला सोने पे सुहागे वाला हो सकता है. . अग्निहोत्र ताम्बे के एक ख़ास ऊर्जा प्रवाहित करने वाले कोणयुक्त पात्र मैं गोघृत और चावल के दानो से किया जाता है.गाए के उपले को जलाकर उस पर सुबह शाम मात्र एक आहुति डाल कर किसी भी बड़े हवन सरीखा लाभ प्राप्त किया जाता है. मुख्य रूप से वातावरण की शुधि से सम्बंधित अग्निहोत्र मैं सूर्योदय के समय सुर्याए स्वाहा….सूर्य इदम..प्रजापतये स्वाहा …प्रजापतये इदम -न-मम मन्त्र बोला जाता है जबकि सूर्यास्त के समय किए जाने वाले अग्निहोत्र मैं अग्नये स्वाहा..अग्नये इदम-न-मम प्रजापतये स्वाहा..प्रजापतये इदम-न-मम बोलना होता है. इस छोटे से अग्निहोत्र का अभूतपूरव लाभ इसके पात्र मैं छिपा है जो अपने खास कोण के कारण इसमें पैदा होने वाली ऊर्जा को कई हज़ार गुणा बढाकर उदवाहित करता है. और आपको बता दें कि यह मात्र अंधविश्वास नहीं है बल्कि बाकायदा विज्ञान भी इसे मानता है. हिमाचल मैं ही पालमपुर कृषि विशाव्विदाल्या मैं जर्मनी के संयुक्त तत्वाधान मैं अग्निहोत्र खेती का एक प्रोजेक्ट इस समय चल रहा है जिस मैं अग्निहोत्र के सविस्तार लाभों का आकलन किया जा रहा है.

1 टिप्पणी:

  1. आपकी सूचना गलत नहीं है , यह उपाय बहुत प्राचीन है , परन्तु हवन मन्त्र और हविष्य सामग्री के इनग्रेडीयन्टस और उनका अनुभाग विस्मृत हो चुका है एपी द्वारा भी नहीं दिया गया है : कमसे कम
    श्री के एन शर्मा एवं श्री सुरेन्द्र ठाकुर का डाक पता ही या फोन न० और यदि कम्प्यूटर रखते हों और ई-मेल पता हो तो वाही देने का कष्ट करे जिससे अन्य लोग भी इसका लाभ उठा सकें !

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