शुक्रवार, 26 नवंबर 2010

कश्मीरी लोगो की भी सुनिए

कश्मीरी पंडितों की पीड़ा है कि अलगाववादियों और अरुंधती राय को सुनने के लिए तो सब तैयार रहते हैं, पर उनके दर्द को दबा दिया जाता है। इसी मुद्दे पर पनुन कश्मीर के संयोजक डॉ अग्निशेखर से वेद विलास उनियाल ने बात की :

-कश्मीरी पंडित क्या चाहते हैं?
आप देखेंगे कि कश्मीर के संदर्भ में इस समय चार विचारधाराएं हैं। एक वे लोग हैं, जो कश्मीर को भारत से अलग करना चाहते हैं। दूसरे वे हैं, जो इसे स्वतंत्र इसलामी राज्य (निजाम-ए-मुस्तफा) बनाना चाहते हैं। तीसरी धारणा यह है कि कश्मीर में अलग तरह की स्वायत्तता हो, संयुक्त प्रशासन हो, लो-मिलिटरी कंट्रोल हो। हम कश्मीरी घाटी के अंदर भारतीयों की तरह जीना-बसना चाहते हैं।

- लेकिन अरुंधती राय तो कश्मीर की दूसरी व्याख्या करती हैं?
कश्मीर अरुंधती के कहने से नहीं चलेगा। उन्हें इतिहास की जानकारी नहीं है। जानना हो, तो यह जानिए कि वह किन शातिर हाथों में खेल रही हैं।

- हाल में कश्मीर में जो स्थिति बिगड़ी, उसके जिम्मेदार कौन हैं?
जब भी स्थिति बिगड़ती है, उसके पीछे नकारा किस्म की राजनीति ही जिम्मेदार होती है। केंद्र आगे बढ़कर कोई ऐक्शन नहीं लेता। मीरवाइज और गिलानी जैसे लोग राष्ट्रद्रोह की बात करते हैं, सरकार खामोश रहती है। स्थिति मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के नियंत्रण में नहीं है। तय मानिए कि जिस तरह की स्थिति कश्मीर में हुई, कोई दूसरा राज्य होता, तो मुख्यमंत्री बदल जाता।

- भाजपा के साथ समान उद्देश्य के लिए साझा संघर्ष में क्या दिक्कतें हैं?
भाजपा बेशक अनुच्छेद 370 को खत्म करने की बात करती हो, लेकिन वह भी कई मामलों में दूसरे दलों से अलग नहीं है।

- ऐसा लगता है कि कश्मीरी पंडितोंकी घाटी में लौटने की लालसा खत्म हो गई?
यहूदियों ने इस्राइल को पाने के लिए 1,800 वर्षों तक संघर्ष किया। तिब्बत के लोग पिछले चालीस साल से यहां रहकर चीन से अपने हकों के लिए संघर्ष कर रहे हैं। क्या इस दौरान उन्होंने अपने दूसरे कामकाज, सामाजिक जीवन रोक दिया? आप कश्मीरी पंडितों के साथ केवल बीस साल में उदासीनता की बात करते हैं। कश्मीरी लोग पढ़े-लिखे, बौद्धिक हैं। हर पनुन कश्मीरी अपनी माटी से जुड़ने की लालसा लिए हुए है।

- मीरवाइज उमर फारूक के साथ चंडीगढ़ में हुए विरोध प्रदर्शन को देखते हुए क्या यह माना जाए कि कश्मीरी पंडित भी अब अपनी मांगों को लेकर उग्र हो रहे हैं? या यह हताशा का परिणाम है?
कश्मीरी पंडित लंबे समय तक शांत होकर अपने हकों के लिए लड़ते रहे हैं। लेकिन अब हम महसूस करते हैं कि देश के खिलाफ बोलने वालों का, जहां जिस तरह की स्थिति होगी, उसी शैली में विरोध किया जाएगा। जिन लोगों पर देशद्रोह का मुकदमा बनना चाहिए उन्हें नेता, समाजसेवी, विचारक कहा जा रहा है।

- ऐसे में समाधान की कोई राह नजर नहीं आती?
जी नहीं, पहले भी कह चुका हूं कि समाधान है। पर उसके लिए आप अपनी दृष्टि को व्यापक कीजिए। देश को तोड़ने और लोगों को गुमराह करनेवालों को तरजीह क्यों देनी चाहिए? इस पर नजरिया साफ होना चाहिए कि क्या देश के खिलाफ बोलने वालों को खुला घूमने दिया जाए। फिर आपको हमारे संघर्ष में सचाई दिखेगी।

गुरुवार, 25 नवंबर 2010

फारूख को राष्ट्रवाद का मुक्का


चंडीगढ़। चंडीगढ़ में एक सेमिनार में भाग लेने आए हुर्रियत नेता मीरवाइज उमर फारूक के साथ धक्का-मुक्की और हाथापाई की गई। जब उमर फारूक ने सेमिनार में बोलना शुरू ही किया था तो एक शख्स ने अचानक से उनपर हमला कर दिया। इसके बाद माहौल अस्त-व्यस्त हो गया।


इस दौरान कई लोग चोटिल हो गए। सुरक्षा को देखते हुए पुलिस ने उमर को सुरक्षा घेरे में ले लिया। मालूम हो कि कश्मीर मसले और भारत-पाकिस्तान के बीच बातचीत के मसले पर ये सेमिनार रखा गया। इस दौरान लोगों ने उमर के साथ हाथापाई शुरू कर दी।
वहीं जम्मू-कश्मीर के सीएम उमर अब्दुल्ला ने इस मसले पर कहा कि हुर्रियत के लोग जिस तरह की राजनीति करते हैं उससे ऐसा होना स्वाभिक है। मैं किसी भी स्तर पर इसकी निंदा नहीं करूंगा।
पुरे कश्मीर की जनता इसका स्वागत करती है .इन तथा कथित तोहफा वादी नेतावो को जनता का जबाब इसी तरह से मिलाना चाहिए (तोहफा वादी इसलिए की ये सभी गिलानी भी पाकिस्तान से तोहफा या घूस कहिये खाते है कश्मीरी जनता को भरका कर उनकी जान लेते है )

रविवार, 21 नवंबर 2010

कांग्रेस एक आंतकवादी पार्टी

कांग्रेस के कुछ नेताओं ने पिछले दिनों से भगवा आतंकवाद पर अनर्गल दुष्प्रचार करना शुरू किया हुआ था परन्तु जब यह उल्टा पडने लगा तो अब ये सोनिया जी की रहनुमाई में हिंदू संगठनों का सीधे नाम लेकर अपने अधूरे रह गये एजेंडे को पूरा करने का षडयन्त्र कर रहे हैं। मालेगांव मामले में कुछ हिन्दू सन्तों और अन्यों को पकड कर इनको अपनी कहानी की पटकथा को पूरा करने मौका मिल गया और ऐसी सब घटनाओं, जिसमें एक भी मुसलमान मरा था , के तार अब वे इनके साथ जोडने के प्रयास कर रहे हैं। इस षडयन्त्र में वे सी०बी० आई० से लेकर प्रांतीय सुरक्षा बलों का खुल कर दुरुपयोग कर रहे हैं और सैक्युलर मीडिया इनका खुल कर साथ दे रहा है। मालेगांव से शुरु करके हैदराबाद,समझौता ऐक्स० और अब अजमेर विस्फोट तक इन सब घटनाओं में हिंदू संगठनों का नाम घसीटा जा रहा है। अधिकांश घटनाओं के अपराधी पकडे जा चुके थे। उनके संबंध हूजी या लश्कर के साथ थे। अब वे हिंदू नेताओं के नाम ले रहे हैं। इस कोशिश में ये न केवल पूरी दूनिया में अपने देश को बदनाम कर रहे हैं अपितु आतंकवाद के विरुद्ध भारत की लडाई को कमजोर करने का महापाप कर रहे हैं। यह आश्चर्य है कि इन्होने कश्मीर में आये भूकम्प, जिसमें कई मुसलमान मरे थे, में अभी तक संघ का नाम क्यों नहीं लिया। पहले ऐसे हिंदु संगठनों का नाम लिया गया जिनको कोइ नहीं जानता था। जब इनके घटिया इरादे पूरे होते नहीं दिखे तो अब ये सीधे-सीधे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का नाम लेने का दुःसाहस करने लगे हैं। कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी से शुरू किया गया यह हमला अब उनकी माताश्री ने आगे बढा दिया और उनके चरणचुम्बन करने वाले नेताओं ने इस पर मर्यादाहीन बयानबाजी शुरू कर दी। ऐसे कारनामे ये पहले भी कर चुके हैं। जवाहर लाल नेहरु से लेकर इन्दिरा गांधी तक इस आग में ये अपने हाथ जला चुके हैं। परंतु हर बार इनको शर्मिंदगी झेलनी पडी है। इनको इतिहास से सबक लेना चाहिये था। परंतु ऐसा लगता है कि इस बार भी ये मूंह की खाकर ही मानेंगे ।

बिहार के चुनाव चल रहे हैं और उत्तरप्रदेश के चुनाव नजदीक हैं। इन दोनों जगह मुस्लिम वोटों का महत्व सबको समझ में आता है। हिंदू संगठनों का नाम बदनाम कर मुस्लिम वोटों को रिझाया जा सकता है, यह कांग्रेस की हमेशा से चाल रही है। इस समय भ्रष्टाचार में आकंठ डूबी कांग्रेस को कामनवैल्थ और आदर्श सोसाइटी के घोटालों से अपना दामन छुडाना मुश्किल दिखाइ दे रहा हैं । देश की जनता का ध्यान इस ओर से हटाने के लिये ये लोग हिंदु आतंकवाद का हौव्वा खडा करने का षडयन्त्र कर रहे हैं। परन्तु वे इस षडयन्त्र में सफल नहीं हो पायेंगे। अभी तक किसी व्यक्ति या संगठन के विरूद्ध कोइ सबूत नहीं है। कई साल पुराने मामलों में भी चार्जशीट तक नहीं पेश कर सके हैं। एक-दो व्यक्तियों को पकडने से पूरे संगठन को कैसे बदनाम कर सकते हैं? इस आधार पर यदि विचार करेंगे तो कांग्रेस पार्टी सबसे बडी आतंकी और भ्रष्ट पार्टी है जिसमें ये सब काम कांग्रेस अध्यक्ष के इशारे पर किये जाते हैं। यदि इन सब अपराधों की सूची बनायी गयी तो समस्त कांग्रेस अध्यक्ष विश्व के सबसे बडे अपराधी और आतंकवादी सिद्ध हो जायेंगे। ऐसे अपराधों की सूची बहुत बडी है। कई अपराध तो बडे नेताओं ने ही किये हैं। इनमे से कई सिद्ध भी हो चुके हैं। इन सबके नाम एक ब्लाग में लिखना असंभव है। फिर भी कुछ घटनाओं के वर्णन से ही स्पष्ट हो जायेगा कि कांग्रेस ही देश की सबसे बडी आतंकवादी पार्टी है और आतंकवाद को यदि मिटाना है तो सबसे पहले इसकी जननी कांग्रेस पर प्रतिबंध लगाना पडेगा।

कोयम्बतूर विस्फोट के प्रमुख अपराधी मदनी के साथ इनके संबंध बहुत पुराने हैं। इन्होंने कम्युनिष्ट पार्टी के साथ मिलकर न केवल जेल से छुडाया था अपितु जब कर्नाटक की पुलिस एक अन्य मामले में पकड्ने गई तो उनके काम में रोडे अटकाये थे। इशरत के मामले में इन्होनें उसको निरपराध सिद्ध करने के भरसक प्रयास किये जबकि लश्कर की वैबसाईट पर उसको लश्कर का आतंकी लिखा गया है जिसको नरेन्द्र मोदी को मारने का काम दिया गया था। बटला हाउस मुठ्भेड के बाद बटला हाउस तो मानो कांग्रेसियों के लिये काबा बन गया था जहां कई नेता सजदा करने जाते रहते थे। इन आतंकियों के प्रणेता आजमगढ में रहते थे। उनको बचाने की कोशिश में दिग्विजय् सिंह से लेकर छोटे बडे सभी नेता लगे लगे रहते थे। सिंमी जैसे दुर्दांत आतंकी संगठन के बचाव के लिये कांग्रेसियों ने जो कारनामे किये हैं, वे केवल उनके साथी ही कर सकते हैं। प्रतिबंध के खिलाफ उनकी लडाई लडने में इनका योगदान इनके संबंधों को बताने के लिये पर्याप्त है। उनके वकील के रूप प्रसिद्ध कांग्रसी नेता सलमान खुर्शीद ने दिन रात एक कर दिये थे। संसद में सोनिया जी ने सिंमी के पक्ष में लडाई की अगुवाइ की तो संसद के बाहर कांग्रेसियों ने धरने -प्रदर्शन कर उनके साथ अपनी निष्ठा को प्रदर्शित किया।मध्य प्रदेश में दिग्विजय सिंह की छत्र छाया में सिमी का किस प्रकार विस्तार हुआ यह इनके संबंधों की गहराई को बताने के लिये काफी है। २००१ में उल्फा के साथ इन्होंने इनके साथ गठबंधन किया था और २००४ में नक्सलवादियों का सहयोग लेकर सरकार बनाने में इन्होंने कोइ संकोच नहीं किया था। आतंकी संगठनों के साथ इनके संबंधों और सहयोग की सूची बहुत बडी है परन्तु ये उदाहरण कांग्रेस का चरित्र बताने के लिये पर्याप्त हैं।

संबंध और सहयोग ही नहीं, इनकी आतंकी घटनाओं में प्रत्यक्ष सहभागिता के भी हजारों उदाहरण स्वतंत्र भारत के इतिहास में बिखरे पडे हैं। १९९३ में सूरत बम्ब विस्फोट भारत के लोग भूल नहीं सकते। इस घटना के प्रमुख अपराधी मौहम्मद सूरती को २० साल की सजा २००८ में सुनाई गई । सूरती साहब कांग्रेस सरकार मॅं मन्त्री रह चुके हैं। इनके साथ जिन अन्य १५ अपराधियों को सजा सुनाइ गई है वे भी कांग्रेस के प्रमुख नेता रहे हैं। गोधरा में मासूम हिंदुओं को जलाने मॅ जिन अपराधियों के नाम प्रमुखता से लिये गये उनके नाम ५ मार्च के इंडियन एक्स० में छपे हैं। महमूद हूसैन कलोटा गोधरा कांग्रेस के अल्पसंख्यक प्रकोष्ट के अध्यक्ष रहे हैं। सलीम अब्दुल गफ्फार शेख पंचमहल युवा कांग्रेस के अध्यक्ष रहे हैं। अब्दुल रहमान, फार्रुख माना, हाजी बिल्लाल आदि सब प्रमुख कांग्रेसी नेता रहे हैं। केवल यही नहीं , अगर गोधरा के बाद की प्रतिक्रिया को आतंकी घटना माना जाये तो इसमें भी कम से कम २५ कांग्रेसी नेताओं के नाम लिये जा रहे हैं।

३००० सिक्खों के कत्ले आम को कभी नहीं भुलाया जा सकता। इस नरसंहार के लिये केवल कांग्रेसी नेता ही कसूरवार हैं। मुसोलिनी की फासिस्ट परम्परा में पली सोनिया जी को देश की जनता का शुक्रगुजार होना चाहिये कि उन्होंने इस घटना में राजीव जी भूमिका की जांच के लिये नहीं कहा क्योंकि भारत में दिवंगत व्यक्ति को माफ कर दिया जाता है। गांधी जी की दुर्भाग्यजनक हत्या के बाद संघ के कार्यकर्ताओं और संघ कार्यालयों पर जिस प्रकार से कांग्रेसियों ने हमले किये थे, वे किसी भी तरह से सिक्खों पर हमले से कम नहीं थे । बाद में नेहरू जी द्वारा स्थापित कमीशन ने यह सिद्ध कर दिया था कि गांधी हत्याकांड में संघ का कोइ हाथ नहीं था। यह बात अलग है कि नेहरू जी ने अपनी गलती का परिमार्जन संघ को १९६३ की गणतंत्र दिवस की परेड में निमंत्रित करके किया था। 1977 में आपात काल की अपराधी इन्दिरा जी की गिरफ्तारी के बाद कांग्रेसियों ने संपूर्ण देश में हिंसा का जो तांडव किया था वह उनके आतंकी चरित्र को ही उजागर करता है। दो कांग्रेसी नेताओं,देवेन्द्र पांडे और भोला पांडे ने लखनऊ से हवाई जहाज का अपहरण किया था। इनमें से एक को बाद में कांग्रेस ने विधायक बनाकर पुरस्कार दिया था। उस समय देश भर में हिंसक प्रदर्शन किये गये व सरकारी सम्पत्ती को नुकसान पहुंचाया गया। उडीसा में स्वामी लक्षमणानंद जी की हत्या का मुख्य आरोपी राधाकांत नायक कांग्रेस का ही सांसद है। इस जघंय हत्याकांड मॅं और भी कई कान्ग्रेसियों के नाम लिये जा रहे हैं। क्या ये घटनाएं कांग्रेस के आतंकी चरित्र को बताने के लिये पर्याप्त नहीं हैं? यदि सोनिया जी के तर्क को स्वीकार किया जाये तो शायद इनका कोई भी अध्यक्ष और प्रधान मंत्री जीवन भर जेल से बाहर नहीं आ सकता था।

कुछ और भी उदाहरण देश के लोगों की आंखें खोलने में सहायता करेंगे। पंजाब की अंदरूनी राजनीति मॅ विरोधियों को परास्त करने के लिये भिंडरवाले को सहायता कर किसने पंजाब को आतंक वाद की आग में झोंका था? भारत में लिट्टे के प्रशिक्षण की व्यवस्था किस नेता ने कराई थी? शेख अब्दुल्ला का साथ देकर किस नेता ने काश्मीर को आतंकियों के हवाले किया था जिसका दुष्परिणाम देश आज भी भुगत रहा है? अपनी पत्नी के टुकडे करके तंदुर में जलाने वाला नेता किस पार्टी का था?

यदि उपरोक्त घटनाओं का ही विचार किया जाये तो यह सहज ही सिद्ध होता है कि कांग्रेस ही इस देश की सबसे बडी आतंकवादी पार्टी है और आज देश आतंकवाद की आग में कांग्रेस के कारण ही जल रहा है। सोनिया जी, अब भी जाग जाओ। अपनी गिरेबान में झांको। यदि आप देश को प्यार करने लगी हैं तो चंद वोटों की खातिर देशभक्त संगठनों पर कीचड ऊछालना बंद कर दो। उनको बदनाम करने की जगह ,उनका सहयोग लो और आतंकवाद से देश को मुक्ति दिलाओ।

कांग्रेस ने देश को बदनाम किया

आज जो भी भारत में हो रहा है ये आजादी के बाद से सदा ही कांग्रेस ने किया है , नेहरू के समय जीप घोटाला । इंदिरा जी के समय अनगिनत राजीव जी के समय तोपों का घोटाला नरसिम्हा जी के समय तो अब गिनना मुशकिल हो गया था । सिंह जी का समय नहीं कहना चाहिए सोनिया , राहुल का समय शुरू हुवा ही है की घोटाले गिनने मुश्किल होगया है । अबतो उबकी बहनों का नाम भी आज्ञा है ।
कांग्रेस ने देश को बदनाम कर घोटालो का देश बना दिया है ।

शनिवार, 13 नवंबर 2010

मुसलमानों को खुश करने में राहुल , राहुल को खुश करने में कांग्रेसी गुलाम

कांग्रेसी गुलामो के द्वारा आज कल संघ के खिलाफ बहुत नारे गए जा रहे है भारत की सडको पर ,लगता है की कांग्रसी लोगो के अन्दर देश प्रेम की ज्वाला भार्कने लगी है । लेकिन एसा नहीं है इनकी ज्वाला अरुधंति , गिलानी , तथा कथित तमाम आतंकी समर्थको के खिलाफ नहीं दिखाई परती , तब ये भीगी बिल्ली बन चुप रहते है , तब राहुल बाबा कही किसी पंचा तारे होटल में आराम फरमाते है जा येयाशी करते है कोण जाने । कायरता के पुतले तब अपनी जुबान खोलने से भी डरते है तब एक सडक मार्च नहीं होता है । हा जब एक प्रश्न सुदर्शन जी ने कहा तो इनको पुतला फुकने की याद आगई । लेकिन ये पुतला फुकने की बात आज ही किसलिए याद ई ये भी सोचने वाली बात है सुदर्शन जी तो बराबर ये बाते समय समय पर उठाते रहते थे इसलिए की वे उस जनता के प्रति निधि है जो अपने प्रिय नेतावो की हत्या का सच जानना चाहती है , सरकार सच बताना नहीं चाहती है जनता सच जानना चाहती है ये प्रश्न उठते रहेगे सालोसाल सुभाष बाबु के सवालो की तरह । हा अगर कांग्रेस के गुलाम सच बोलने की हिम्मत रखते है तो सुदर्शन जी के सवालो का जबाब दो ।
गुलामो तुम जबाब नहीं दोगो जनता ये भी जानती है तुमको कुर्सी चाहिए , राहुल को कुर्सी चाहिए उसके लिए तुम सब करने के लिए भी तेयार हो करो कुर्सी के लिए तो आजकल नेता अपनी माँ बहन की शादी भी करदेते है ।
कुर्सी के लिए राहुल को मुसलमनो को खुश करना है गुलामो को अपनी कुर्सी के लिए राहुल को ,करो खुश लेकिन हम भारत के उस जगह के रहने वाले है जो आजाद है हम सवल करते रहगे रावण की तरह पुतले जालाने का कम करो येही पुतले एक दिन हनुमान बन कर तुम्हारी लंका जला डालेगे समझ लेना ।
भारत माता की जय

शुक्रवार, 12 नवंबर 2010

सुदर्शन जी ने सत्य जानना चाहा तो कांग्रेस सत्य बतालावो

सुदर्शन जी ने सत्य जानना चाहा तो कांग्रेस सत्य बतालावो
सुदर्शन जी का प्रश्न आज हर भारतीय के मन की बात है । आज भी हम भारतीय सत्य नहीं जानते की हमरी प्रिय नेता इन्द्रा जी को गोली लगने के बात क्या क्या हुवा ? उनको इतनी देर बाद क्यों हस्पताल ले जाया गया ? उनकी सुरक्षा में कहा से चूक होगयी ? क्या क्या हमरे प्रिय नेता की हत्या एक संयोग मात्र था , या उनकी हत्या एक सुनियोजित थी ? अगर सुनियोजित थी तब हामारी सुरक्षा के संगठन इतने लापरवाह थे की पता नहीं लगा सके । उनकी इस हत्या में ओर कोण से लूग थे ?उनके नाम का खुलासा आज तक किस लिए नहीं हुवा ? उस समय उनके परिवार के सदस्य क्या कर रहे थे ?
ये सरे सवाल जो सुदरसन जी रखे ये उनके ही नहीं हम सभी भारत वासियों के है हांजानना चाहते ।
जहा तक हमारे प्रिय नेता श्री राजीव जी की बात है । हम सभी जानना कहते है की साये कीतरह चलने वाली श्री मति सोनिया गाँधी उस वक्ता क्यों उनके साथ नहीं थी ? ये एक संयोग था या कोई सुनियोजित चाल थी ?
जहा तक मुझे पता है सुदरसन जी हर समय सालो से इस सवाल का जबाब पुछा रहे है , उनके मन की पीड़ा है एक व्यक्ति जो अपना पूरा जीवन राष्ट्र को समर्पित किया है उसके मन में जरूर पीड़ा होगी की उसके देश का एक युवा नेता की न्रिसंस हत्या कर दीगयी , उसके देश के एक प्रिय नेता की न्रिसंसा हत्या उसके ही अंगा रक्षको के द्वार की गयी उनके मन की पीड़ा , उनके प्रश्नों का जबाब दिए बिना चारो तरफ आतंक फेला कर तथा कथित नेता उनको धमकी देते है इससे सुदरसन जी डरने वाले नहीं है । अगर वो डरते है तो डरे ये प्रश्न सभी भारतीय जनता का है जो सब दिन उठाएगी कांग्रेस को सोनिया को सभी को देना होगा ।
कांग्रेस सोचती है सुदरसन जी को अधर बना कर उन तमाम घोटाले जो हो रहे है उनको छिपा लेगी वो भी अब छिपाने वाले नहीं । कांग्रेस होश में आओ भारतीयों के प्रश्नों का उत्तर बतालावो

बुधवार, 10 नवंबर 2010

आतंकवाद से संघ का नाम जोड़ना एक साजिश






लखनऊ। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सर संघचालक मोहन भागवत ने संघ का नाम आतंकवाद के साथ जोड़े जाने की कोशिशों को हिन्दू समाज का मनोबल तोड़ने की एक सोची समझी साजिश का परिणाम करार देते हुए बुधवार को यहां कहा कि इन तमाम आरोपों के बीच संघ, कानून और जनता की नजर में और प्रखर होकर निकलेगा।

भागवत आज यहां संघ और हिन्दू संगठनों पर आतंकवाद में शामिल होने और भगवा आतंकवाद जैसे आरोपों के विरोध में आयोजित प्रतीकात्मक धरने को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि जब जब दिल्ली की सत्ता डोलने लगती है तब तब संघ पर हमला किया जाता है और आज फिर उन्हीं हालात में छलकपट से संघ के साथ आतंकवादी शब्द चिपकाने की कोशिश की जा रही है।

भागवत ने कहा कि कतिपय आतंकवादी घटनाओं में पकड़े गए हिन्दूओं को संघी बताकर संघ परिवार को बदनाम करने की सोची समझी साजिश की जा रही है, मगर इस बार हम खामोश रहने वाले नहीं हैं।

कुछ वर्षो पहले अजमेर में हुए विस्फोटों में संघ के पदाधिकारी इन्द्रेश का नाम जोड़े जाने की घटना का उल्लेख करते हुए भागवत ने कहा कि अब हम खामोश रहने वाले नहीं हैं , हमने फैसला किया है कि हम जनता के बीच जाएगें और उन्हें पूरी सच्चाई से अवगत कराएंगे। लड़ाई अदालत में भी लड़ी जाएगी।

संघ प्रमुख ने चेतावनी के स्वर में कहा कि यदि इससे भी बात न बनी तो हम संघ और हिन्दू संगठनों को बदनाम करने वालों को सबक सिखाने का अन्य रास्ता भी अपनाएगें। यह कहते हुए कि धरना प्रदर्शन संघ की न तो संस्कृति है और न ही स्वभाव, भागवत ने कहा कि हमें मजबूरन धरना प्रदर्शन के रास्ते को अपनाना पड़ा है। उन्होंने हिन्दू समाज के सामने उत्पन्न चुनौतियों की गंभीरता को रेखांकित करते हुए बताया कि इसके पहले भी संघ ने कुछ मौको पर धरने किए है , मगर यह पहला मौका है कि कोई संघ प्रमुख स्वयं धरने में शामिल हो रहा है और इस तरह के धरने पूरे देश में आयोजित किए जा रहे हैं।

हिन्दू समाज, भगवा रंग और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ को आतंक और हिंसा का विरोधी और अहिंसा और प्रेम का पोषक बताते हुए संघ प्रमुख ने कहा कि कतिपय आतंकवादी घटनाओं में पकड़े गए हिन्दूओं को संघी बताना गलत है। हो सकता है कि कभी उनमे से कुछ संघ से जुड़े रहे हो और उग्र हिन्दू हो। उन्होंने कहा कि पहले उनका नाम संघ और हिन्दुत्व से जोड़ा गया और बाद में विरोध की आशंका होने पर 'भगवा आतंकवाद' का शब्द उछाला गया, मगर कोशिश यही है कि हिन्दू समाज के मनोबल को तोड़ा जाए और यह प्रयास कोई नया नहीं है।

भागवत ने कहा कि आजादी आने के बाद से संघ पर तीन बार प्रतिबंध लग चुका है, कारण कि जब जब दिल्ली की सत्ता डोलने लगती है संघ पर हमला होता है, लेकिन हर बार संघ और प्रखर होकर उभरता है। संत, मंदिर और संघ को देश की एकता और अखंडता तथा पहचान बताते हुए, भागवत ने आरोप लगाया कि सत्ता में बने रहने के लिए अंग्रेजो की तरह बांटो और राज करो की नीति अपनाने वाली ताकतों को संघ उनकी राजनीति की राह में एक बाधा की तरह दिखाई देता है, इसीलिए इसे बदनाम करने की कोशिश की जाती है। उन्होंने कहा कि चुनावी स्वार्थ के लिए समाज को बांट कर वोट की राजनीति करने की आदी रही ताकतें संत, मंदिर और संघ को बदनाम करने की साजिश रच रही हैं।

कुछ वर्षों पहले कांची कामकोटि के शंकराचार्य की गिरफ्तारी से लेकर उड़ीसा के आदिवासी लोगों के स्वावलंबन के लिए काम करने वाले स्वामी लक्ष्मणानंद की हत्या का उल्लेख करते हुए संघ प्रमुख ने कहा कि यह हमले इसलिए हुए क्योंकि उनके काम से मतांतरण करवाने वाली ताकतें कमजोर हो रही थी।

भागवत ने यह भी कहा कि लक्ष्मणानंद की हत्या की साजिश रचने वाले खुले आम घूम रहे हैं और दिल्ली में अलगाववादी आकर बैठकें कर जाती हैं, जम्मू और कश्मीर के मुख्यमंत्री यह कह कर चले जाते हैं कि कश्मीर में जो भी हो, उसमे पाकिस्तान की भी राय होनी चाहिए , मगर सरकार कुछ कर नहीं पाती। उन्होंने कहा कि हिन्दुत्व सभी धर्मो और आस्थाओं को मान्यता ही नहीं देता बल्कि इन्हें स्वीकार भी करता है और संघ की नजर में इस देश के सभी ईसाई व मुसलमान हिन्दू है।

भागवत ने कहा कि संघ और हिन्दू समाज को बदनाम करने के लिए की जा रही साजिशें देश की एकता और अखंडता पर खतरा है और हमें ऐसी ताकतों को पहचान कर इनके षडयंत्रों को नाकाम करना होगा। उन्होंने कहा कि जब 30 सितम्बर को अयोध्या के बारे फैसला आया तो हमने सबको एक जुट बने रहने का आह्मवान किया, मगर जो लोग पहले अदालत के फैसले को मानने की बात करते थे, उन्हें अपनी चुनावी वोट की राजनीति में सेंध लगती दिखी और वोट के लिए कुछ भी करने वालो ने संघ पर उंगुली उठानी शुरु कर दी। उन्होंने कहा कि वोट की राजनीति के लिए संघ का हौव्वा खड़ा करके मुसलमानों में भय पैदा करने की राजनीति होती रही है, मगर ऐसा करने वालों को अंत में कुछ भी हासिल होने वाला नहीं है, कारण साफ है कि सच एक दिन सिर चढ़ कर बोलेगा और तब दूध का दूध पानी का पानी हो जाएगा।

सर संघचालक ने जोर देते हुए कहा कि वे सम्पूर्ण समाज को सावधान करना चाहते हैं कि वे साजिश को पहचाने और ऐसी ताकतों की चाल में न आए तथा धर्म मजहब से उूपर उठकर सामाजिक एकता को बनाए रखे।

मंगलवार, 2 नवंबर 2010

प्रचंड ने नेपाल को बर्बाद कर दिया प्रचंड भगावो नेपाल बचावो



नेपाल दुनिया का एकमात्र राष्ट्र जो कभी गुलाम न रहा आज कामरेडों की गुलामी से बर्बाद होता जारहा है । नेपाल की हालत ये होगई की उसके पास अपने मंत्रियो को तनखाह देने के लिए भी पेसे नहीं है । प्रचंड की नीतियों ने नेपाल को चीन का गुलाम बना रखा है प्रचंड अपनी मत्वा कक्षा पूरी करने के लिए चीन के हाथो खेलते जा रहे है ।।
बस एक ही उपाय है प्रचंड भगावो नेपाल बचावो

नेपाल में राजनैतिक हालात लगातार खराब होते जा रहे हैं। लगातार प्रयासों के बाद भी प्रधानमंत्री का चुनाव नहीं हो पाया है। लेकिन समस्या सिर्फ इतनी ही नही है ।हिमालय की गोद में बसे इस देस की वित्तीय स्थिति भी खराब हो गयी है। नेपाल के कार्यवाहक प्रधानमंत्री के कार्यालय ने यह ऐलान किया है कि उनके पास अब प्रधानमंत्री और उनके मंत्रियों को तनख्वाह देने के लिए पैसे नहीं हैं। मध्य नवंबर में देने के लिए अब सरकारी खजाने में पैसा नहीं है। प्रधानमंत्री और मंत्रीपरिषद के कार्यालय प्रमुख उमाकांत आचार्य के मुताबिक पिछले महीने हमने बड़ी मुश्किल से प्रधानमंत्री, मंत्रियों और उनके कर्मचारियों को बड़ी मुश्किल से तनख्वाह दी है।

माधव कुमार नेपाल की कैबिनेट में करीब 44 सदस्य हैं। सभी सदस्यों के करीब 6-7 सहयोगी हैं। प्रधानमंत्री, उनके कैबिनेट सहयोगी और उनके निजी 6-7 स्टाफ को सैलरी देने के लिए प्रधानमंत्री कार्यालय को करीब 80 हजार डॉलर (35 लाख रुपये) की जरूरत होती है।

नेपाली माओवादियों के सरकार विरोधी जोरदार प्रदर्शन के बीच बजट रोकने की धमकी के बाद माधव कुमार ‘नेपाल’ ने इसी साल 30 जून को प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। ‘नेपाल’ के इस्तीफे के बाद कामचलाऊ सरकार ने सरकारी खर्च को पूरा करने के लिए 12 जुलाई को डेढ़ अरब डॉलर का आंशिक बजट पेश किया। यह खर्च चार महीने के लिए था। सरकार को उम्मीद थी कि नई सरकार मध्य नवंबर तक नया बजट पेश कर देगी। लेकिन तब से अब तक 14 बार की कोशिशों के बाद भी संसद में नए प्रधानमंत्री का चुनाव नहीं किया जा सका है।

इस हालात में वर्तमान सरकार क्या कदम उठाती है देखना दिलचस्प है । भारत ने भी वहां की राजनीतिक गतिरोध दूर करने के लिए कई बार प्रयास कर चुका है।चीन, नेपाल को भारत के खिलाफ इस्तेमाल करना चाहता है । ऐसे में चीन उसके आर्थिक दिवालीएपन को भूनाने की कोशिश करेगा।

सोमवार, 1 नवंबर 2010

Het Shradha Ritueel

Beste mensen .
In deze nieuwsbrief zullen we dieper ingaan op de rituelen die uitgevoerd worden als iemand overlijdt. We zullen daarom de informatie die in de vorige nieuwsbrief stond hierin verwerken zodat alles bij elkaar staat met betrekking tot dit onderwerp. Vandaag wordt in Nederland Allerheligen gevierd en daarom willen we dit onderwerp vandaag aanbieden ter ere van alle overleden zielen.

Sanatan Dharma .
Volgens Sanatan Dharma gaat bij het overlijden van een mens, de ziel over naar gene zijde en het lichaam gaat terug op in de elementen. Het lichaam zal door verbranding sneller door dit proces gaan dan bij een begrafenis van het lichaam in de aarde. Er zijn enkele uitzonderingen wanneer iemand niet gecremeerd mag worden, vraag dit aan uw pandit. De ziel echter zal altijd blijven bestaan en zal zich losmaken van het lichaam van de overledene om daarna over te gaan naar het hiernamaals. Als de tijd rijp is zal de ziel opnieuw incarneren in een aards lichaam. Met reïncarnatie wordt het proces aangeduid dat de ziel steeds opnieuw geboren zal worden in een aards lichaam net zo lang totdat de ziel alle aspecten van het aardse leven geleerd heeft en terug op kan gaan in de energie van Brahma (God). Het is daarom erg belangrijk dat er rituelen worden uitgevoerd om het lichaam terug te geven aan de elementen en de ziel te begeleiden naar een zo optimaal mogelijke overgang zodat de ziel schoon en vrij is om verder te groeien . De heilige geschriften gaan er vanuit dat de rituelen voor een overledene onlosmakelijk verbonden zijn met de voorouders van de overledene die ook de effecten hiervan genieten.

Shradha /Shraad

Volgens de heilige geschriften is Shradha / Shraad is de verzamelnaam voor alle rituelen mbt het teruggeven van het lichaam aan de elementen en het overgaan van de ziel. Als iemand overlijdt worden gedurende 10 dagen rituelen uitgevoerd die nodig zijn om het hele proces voor de overledene tot een goed einde te brengen. Dat betekent dat men gedurende deze 10 dagen met alle familieleden s’avonds een uur bij elkaar komt om te bidden en mantra ’s te reciteren voor de overledene. Op de 10e dag wordt er met een Pandit een Shradha ritueel uitgevoerd. Daarna wordt in de 6e maand na het overlijden nogmaals een kort Shradha ritueel uitgevoerd. Ter afsluiting, wordt na een jaar het laatste Shradha ritueel gedaan.

Wie voert het Shradha ritueel uit:

Er is één persoon die het gehele Shradha ritueel gedurende de 10 dagen uitvoert en begeleidt en dat is de oudste zoon van de overledene maar indien deze niet kan dan de volgende zoon. Is er geen zoon dan komt de vrouw of man van de overledene. Is er geen echtgenote komt de zoon van de dochter en is die er ook niet dan wordt een priester gevraagd of iemand anders.

Voorbereiding:

Wanneer men weet dat iemand over gaat, kunnen de beschikbare familieleden bij elkaar komen bij de betreffende persoon. Men gaat samen bidden voor een goede overgang (reis) naar het hiernamaals. Bedenk dat iemand een reis gaat beginnen en dat het verstorend voor de ziel is als er veel emoties getoond worden. Probeer dus rustig te blijven voor het welzijn van de ziel. Reciteer de namen van de Goden en Godinnen (Kirtan). Het is goed als een persoon dit vlakbij de oren van degene doet die overgaat. Als er veel emoties getoond worden dan zal de ziel de tranen, slijm en spuug van de familieleden opnemen als voedsel en dit zal het proces van overgaan ernstig blokkeren (zie Yaghawalka smriti 1.11 en zie Valmiky Ramayana). Dus in het bijzijn van de overledene liever geen negatieve emoties of verdriet uiten, geen problemen bespreken, niet roddelen etc. maar alleen bidden voor de ziel.
Als iemand op het moment van overgaan komt dan deze persoon op de grond leggen, het lichaam schoonmaken met Gangawater en in geheel witte kleding steken. Als iemand een Janewoo (heilige draad) draagt deze vernieuwen. Op het voorhoofd met chandan een stip maken en daarop tulsibladeren leggen. Naast het lichaam wierook en een dya aansteken. Gangawater vermengd met tulsiblad in de mond druppelen. Indien er een Brahmaan aanwezig is daan geven.


Deze mantra kan men reciteren voor de voorouders:
Na men ast wittam cha naanyachkshadhdopyigyam swapitrun-natoasmie
Trupuantu bhakta pitaro mayio krutyao bhujou watrmani maarutsya
Met heel mijn hart geef ik alles wat ik heb aan u, aanvaard deze gaven en mijn wensen voor een goed leven.


1।Dharti Shayan:

Als iemand is overleden en de dood is vastgesteld door een arts word het lichaam met het hoofd naar het noorden opgebaard. Men volgt de aanwijzingen voor het lichaam zie boven. Op de mond, ogen, neus en oren wordt iets van goud gelegd, is dit niet voorradig dan een druppel ghee. Vervolgens wordt een witte doek over de overledene gelegd zo dat de tenen bedekt zijn maar de voetzolen vrij. Bovenop de doek worden bloemen gelegd. Onder het lichaam wordt wat kusha gras, tulsi bladeren en zwart sesamzaad gelegd. Vrouwen die menstrueren mogen de overledene niet aanraken. Daarna beslissen de nabestaanden wanneer de crematie is.

(Zie Hari Har Bhashaya mantra:

praak shiresham udek shirsham wa bhumow niweshyeet of zie Garuna Purana mantra: tato neetwa shamashaaneshu stahpayeduttramukham.)

2 Pinda Daan,

Men maakt balletjes van rijst of meel die worden geofferd met mantra recitatie. 1e voor de grond waarop het lichaam is overgegaan, 2e voor het huis van de overledene, 3e voor de kruispunten die het lichaam voor de crematie nog moet oversteken, voor bescherming, 4e voor de grond bij de crematie plaats, 5e vóór de crematie op de verbrandingsplaats om de negatieve invloeden te elimineren, 6e na de crematie op de verbrandingsplaats om deze te zuiveren van bacterieën die achterblijven.
2। Chita Agni : Bij de crematie is het belangrijk dat de overledene met het hoofd naar het zuiden gecremeerd wordt. Degene die het Shradha ritueel uitvoert steekt zelf het vuur aan bij het hoofd van de overledene. Het beste is om hout als brandstof voor de verbranding te gebruiken.


3. Kapaal Krya:

Hierna, omdat de ziel verbonden blijft met de kruinchakra, moet men deze verbinding afbreken door 3 x met een stok op het voorhoofd te tikken.

4. Pradaksina:

Men maakt 7 stukjes hout in de maat van: uiteinde pink tot uiteinde duim van degene die het ritueel uitvoert. Deze loopt dan 7 x rond het lichaam van de overledene en telkens als men bij de voeten is dan wordt een stukje hout aan het vuur toegevoegd. Men reciteert de mantra: krawya daay namastubhyam.

5. Asthi Wishardjan :

Meteen na de totale verbranding wordt de as aan de rivier gegeven. Vervolgens gaat iedereen baden.

6. Griha Prawesha:

Iedereen die bij de crematie aanwezig was gaat naar het huis van degene die het ritueel uitvoert. Voordat men binnengaat zal iedereen in een Neemblad bijten, de hand even bij het vuur houden wat buiten staat. Binnen wordt gebeden voor de overledene.

Begin van het 10 daagse ritueel

7. Dash Gaatra:

De dag na Griha Prawesha begint het 10 daagse ritueel. Tijdens dit ritueel heeft degene die het ritueel uitvoert geen lichamelijk contact met andere mensen. Men mag ook deze persoon niet aanraken. Men slaapt op de grond en eet voor zonsondergang. Het gebruik van metalen voorwerpen als bekers, bestek etc. wordt afgeraden. Men geeft elke dag voor men gaat eten eerst eten aan een koe en zet eten voor de ziel van de overledene buiten. Men bidt elke dag voor de overledene. Wat de familie betreft mag men deze 10 dagen geen sexueel contact hebben en elke dag na het baden wordt water met sesamzaad en kushagras geofferd voor de ziel van de overledene. Men eet de gehele periode vegetarisch en gebruikt geen make-up etc, men knipt geen haren of scheert zich niet. Men groet of zegent niemand. Men komt elke dag samen om te bidden en op de 1e, 3e, 7e en 10e dag wordt ook samen gegeten voor zonsondergang.

8. Dya daan:

De uitvoerder van het ritueel zet elke dag s’avonds een dya op het zuiden van zijn huis.
9. Pinda daan: de uitvoerder van het ritueel voert elke ochtend ook het Pinda daan ritueel uit voor het nieuwe lichaam waarin de ziel opnieuw zal ïncarneren. Elke dag wordt een gedeelte van dit nieuwe lichaam gecreëerd.

Invloed

De gebruiken tijdens het ritueel worden alleen beïnvloed door factoren als waar iemand woont, welke tijd het is en welke zaken voorhanden zijn om te offeren. Soms vraagt dit aanpassingen. Maar wat overal gelijk is, is het gebruik van sesamzaad, kusha gras en mantra’s. (zie: Maharsi Paraashara).
De voorouders van de overledene hebben direct invloed van het wel of geen rituelen uitvoeren.
Het offeren van vele goederen is niet nodig, voor positieve invloed en effecten is het belangrijkste voor de ziel het reciteren van mantra’s en Pinda daan.
Voor degene die het ritueel uitvoert heeft het gunstige effecten, hij of zij bereikt daardoor sneller moksha ofwel verlossing van de reïncarnatiecyclus (Kurma Purana). Volgens de Garuna Purana heeft het gunstige effecten voor de welvaart van de uitvoerder. Volgens de Markandya Purana is het gunstig voor een lang leven, respect, financieën en kennis.
Indien een familielid bij een overlijden geen ritueel uitvoert voor de overledene dan heeft men hiervan ongunstige effecten. De Brahama Purana zegt hierover dat wanneer een overledene geen ritueel krijgt zijn of haar ziel rond zal dolen in het hiernamaals en zijn groei niet kan voortzetten wat kan betekenen dat de nabestaanden hiervan last kunnen krijgen.

De praktijk

Hier willen we nogmaals benadrukken dag het belangrijk is om een goed ritueel uit te voeren als iemand overlijdt. We zien nogal eens dat kinderen, wanneer een van de ouders overlijdt, geneigd zijn om de rituelen over te slaan en/of alles op een dag af te werken. Helaas werken sommige pandits hier aan mee. Men dient te bedenken dat het investeren van 10 dagen om een Shradha ritueel tot een goed einde te brengen niets in vergelijking met de tijd die bv ouders hebben opgebracht om hun kinderen groot te brengen. Verdrietig is om te merken dat er wel veel tijd en geld in gestoken wordt om de erfenis te verkrijgen. Deze rituelen kunnen niet ingeperkt worden omdat het een proces is voor de ziel van de overledene om uiteindelijk goed over te kunnen gaan en dat de nabestaanden de rouwverwerking goed doorkomen. Als er door te snelle of onafgemaakte afscheidsrituelen problemen komen is waargenomen dat men zelfs voodoo uit gaat oefenen om de problemen te beïnvloeden of dure reizen onderneemt naar India en Suriname om oplossingen te zoeken.
Zelfs gebeurd het, omdat men bang is dat men geen goed afscheidsritueel krijgt, men tijdens het leven al een overlijdensritueel voor zichzelf uit gaat voeren. Dit kan echter alleen onder zeer strikte voorwaarden bv als er helemaal geen familie meer in leven is. Ook weet men niet dat er na een dergelijk ritueel aanpassingen nodig zijn in de leefregels die men moet naleven totdat men overlijdt. Het is dus van belang dat men duidelijke afspraken maakt tijdens het leven als men zich wil verzekeren van een goede gang van zaken als men komt te overlijden. Deze op schrift gestelde afspraken (wilsbeschikking) kunnen evt bij de overlijdensverzekeraar bewaard worden.
In Nederland is de uitleg over gebruiken mbt het Shradha ritueel zeer uiteenlopend en soms niet correct. We weten dat de crematoria in Nederland niet voldoen aan de eisen om het Shradha ritueel goed uit te voeren. Maar we kunnen wel samen streven om het zo goed mogelijk te doen en te zoeken naar betere oplossingen, meer mogelijkheden en het liefst de realisatie van een echte Hindoestaanse begraafplaats in Nederland. We roepen daarom mensen op om gezamenlijk de handen ineen te slaan en te onderzoeken wat er mogelijk is op dit gebied. Begrafenisondernemers , verzekeraars en crematoria zouden de mogelijkheden meer kunnen integreren. In Engeland heeft een Hindoestaanse man jarenlang geprocedeerd voor het recht op een hindoestaanse crematie, vorig jaar heeft hij zijn zaak uiteindelijk gewonnen en zal er een hindoestaanse begraafplaats gebouwd mogen worden. Dus als begrafenisondernemers, crematoria, juristen en andere specialisten dit verder willen onderzoeken en hun steentje hierin willen bijdragen. Laat het ons weten.

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