बुधवार, 26 अगस्त 2009

ऊं जय जगदीश हरे


इस देश के घर-घर और मंदिरों में जिसके शब्द बरसों से गूंज रहे हैं, दुनिया के किसी भी कोने में बसे किसी भी सनातनी हिंदू परिवार में ऐसा व्यक्ति खोजना मुश्किल है जिसके ह्रदय-पटल पर बचपन के संस्कारों में उसके लिखे शब्दों की छाप न पड़ी हो। उनके शब्द उत्तर भारत से लेकर दक्षिण भारत के हर घर और मंदिर मे पूरी श्रध्दा और भक्ति के साथ गाए जाते हैं। बच्चे से लेकर युवाओं को और कुछ याद रहे या न रहे इसके बोल इतने सहज, सरल और भावपूर्ण है कि एक दो बार सुनने मात्र से इसकी हर एक पंक्ति दिल और दिमाग में रच-बस जाती है।

हम बात कर रहे हैं देश और दुनियाभर के करोड़ों हिन्दुओं के रग-रग में बसी ओम जय जगदीश की आरती की। हजारों साल पूर्व हुए हमारे ज्ञात-अज्ञात ऋषियों ने परमात्मा की प्रार्थना के लिए जो भी श्लोक और भक्ति गीत रचे, ओम जय जगदीश की आरती की भक्ति रस धारा ने उन सभी को अपने अंदर समाहित सा कर लिया है। यह एक आरती संस्कृत के हजारों श्लोकों, स्तोत्रों और मंत्रों का निचोड़ है। लेकिन इस अमर भक्ति-गीत और आरती के रचयिता पं. श्रध्दाराम शर्मा के बारे में कोई नहीं जानता और न किसी ने उनके बारे में जानने की कोशिश की। हमारे हजारों पाठकों ने हमारा ध्यान इस ओर आकर्षित किया कि हम ओम जय जगदीश की आरती के लेखक के बारे में कुछ बताएं। प्रस्तुत है इस अमर रचनाकार का जीवन परिचय।
ओम जय जगदीश की आरती जैसे भावपूर्ण गीत के रचयिता थे पं. श्रध्दाराम शर्मा। प. श्रध्दाराम शर्मा का जन्म 1837 में पंजाब के लुधियाना के पास फुल्लौर में हुआ था। उनके पिता जयदयालु खुद एक अच्छे ज्योतिषी थे। उन्होंने अपने बेटे का भविष्य पढ़ लिया था और भविष्यवाणी की थी कि यह एक अद्भुत बालक होगा। बालक श्रध्दाराम को बचपन से ही धार्मिक संस्कार तो विरासत में ही मिले थे। उन्होंने बचपन में सात साल की उम्र तक गुरुमुखी में पढाई की। दस साल की उम्र में संस्कृत, हिन्दी, पर्शियन, ज्योतिष, और संस्कृत की पढाई शुरु की और कुछ ही वर्षो में वे इन सभी विषयों के निष्णात हो गए।

पं. श्रध्दाराम ने पंजाबी (गुरूमुखी) में 'सिखों दे राज दी विथिया' और 'पंजाबी बातचीत' जैसी किताबें लिखकर मानो क्रांति ही कर दी। अपनी पहली ही किताब 'सिखों दे राज दी विथिया' से वे पंजाबी साहित्य के पितृपुरुष के रूप में प्रतिष्ठित हो गए। इस पुस्तक मे सिख धर्म की स्थापना और इसकी नीतियों के बारे में बहुत सारगर्भित रूप से बताया गया था। पुस्तक में तीन अध्याय है। इसके अंतिम अध्याय में पंजाब की संकृति, लोक परंपराओं, लोक संगीत आदि के बारे में विस्तृत जानकारी दी गई थी। अंग्रेज सरकार ने तब होने वाली आईसीएस (जिसका भारतीय नाम अब आईएएस हो गया है) परीक्षा के कोर्स में इस पुस्तक को शामिल किया था।

1870 में उन्होंने ओम जय जगदीश की आरती की रचना की। प. श्रध्दाराम की विद्वता, भारतीय धार्मिक विषयों पर उनकी वैज्ञानिक दृष्टि के लोग कायल हो गए थे। जगह-जगह पर उनको धार्मिक विषयों पर व्याख्यान देने के लिए आमंत्रित किया जाता था और तब हजारों की संख्या में लोग उनको सुनने आते थे। वे लोगों के बीच जब भी जाते अपनी लिखी ओम जय जगदीश की आरती गाकर सुनाते। उनकी आरती सुनकर तो मानो लोग बेसुध से हो जाते थे। आरती के बोल लोगों की जुबान पर ऐसे चढ़े कि आज कई पीढियाँ गुजर जाने के बाद भी उनके शब्दों का जादू कायम है।

उन्होंने धार्मिक कथाओं और आख्यानों का उध्दरण देते हुए अंग्रेजी हुकुमत के खिलाफ जनजागरण का ऐसा वातावरण तैयार कर दिया कि अंग्रेजी सरकार की नींद उड़ गई। वे महाभारत का उल्लेख करते हुए ब्रिटिश सरकार को उखाड़ फेंकने का संदेश देते थे और लोगों में क्रांतिकारी विचार पैदा करते थे। 1865 में ब्रिटिश सरकार ने उनको फुल्लौरी से निष्कासित कर दिया और आसपास के गाँवों तक में उनके प्रवेश पर पाबंदी लगा दी गई। जबकि उनकी लिखी किताबें स्कूलों में पढ़ाई जाती रही।

पं. श्रध्दाराम खुद ज्योतिष के अच्छे ज्ञाता थे और अमृतसर से लेकर लाहौर तक उनके चाहने वाले थे इसलिए इस निष्कासन का उन पर कोई असर नहीं हुआ, बल्कि उनकी लोकप्रियता और बढ गई। लोग उनकी बातें सुनने को और उनसे मिलने को उत्सुक रहने लगे। इसी दौरान उन्होंने हिन्दी में ज्योतिष पर कई किताबें भी लिखी। लेकिन एक इसाई पादरी फादर न्यूटन जो पं. श्रध्दाराम के क्रांतिकारी विचारों से बेहद प्रभावित थे, के हस्तक्षेप पर अंग्रेज सरकार को थोड़े ही दिनों में उनके निष्कासन का आदेश वापस लेना पड़ा। पं. श्रध्दाराम ने पादरी के कहने पर बाईबिल के कुछ अंशों का गुरुमुखी में अनुवाद किया था। पं. श्रध्दाराम ने अपने व्याख्यानों से लोगों में अंग्रेज सरकार के खिलाफ क्रांति की मशाल ही नहीं जलाई बल्कि साक्षरता के लिए भी ज़बर्दस्त काम किया।

आज जिस पंजाब में सबसे ज्यादा कन्याओं की भ्रूण हत्याएं होती है इसका एहसास उन्होंने बहुत पहले कर लिया था। 1877 में भाग्यवती नामक एक उपन्यास प्रकाशित हुआ (जिसे हिन्दी का पहला उपन्यास माना जाता है), इस उपन्यास की पहली समीक्षा अप्रैल 1887 में हिन्दी की मासिक पत्रिका प्रदीप में प्रकाशित हुई थी। इसे पंजाब सहित देश के कई राज्यो के स्कूलों में कई सालों तक पढाया जाता रहा। इस उपन्यास में उन्होंने काशी के एक पंडित उमादत्त की बेटी भगवती के किरदार के माध्यम से बाल विवाह पर ज़बर्दस्त चोट की। इसी इस उपन्यास में उन्होंने भारतीय स्त्री की दशा और उसके अधिकारों को लेकर क्रांतिकारी विचार प्रस्तुत किए।

पं. श्रध्दाराम के जीवन और उनके द्वारा लिखी गई पुस्तकों पर गुरू नानक विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के डीन और विभागाध्य्क्ष श्री डॉ. हरमिंदर सिंह ने ज़बर्दस्त शोध कर तीन संस्करणों में श्रध्दाराम ग्रंथावली का प्रकाशन भी किया है। उनका मानना है कि पं. श्रध्दाराम का यह उपन्यास हिन्दी साहित्य का पहला उपन्यास है। लेकिन यह मात्र हिन्दी का ही पहला उपन्यास नहीं था बल्कि कई मायनों में यह पहला था। उनके उपन्यास की नायिका भाग्यवती पहली बेटी पैदा होने पर समाज के लोगों द्वार मजाक उडा़ए जाने पर अपने पति को कहती है कि किसी लड़के और लड़की में कोई फर्क नहीं है। उन्होने इस उपन्यास के जरिए बाल विवाह जैसी कुप्रथा पर ज़बर्दस्त चोट की। उन्होंने तब लड़कियों को पढाने की वकालात की जब लड़कियों को घर से बाहर तक नहीं निकलने दिया जाता था, परंपराओं, कुप्रथाओं और रुढियों पर चोट करते रहने के बावजूद वे लोगों के बीच लोकप्रिय बने रहे। जबकि वह ऐक ऐसा दौर था जब कोई व्यक्ति अंधविश्वासों और धार्मिक रुढियों के खिलाफ कुछ बोलता था तो पूरा समाज उसके खिलाफ हो जाता था। निश्चय ही उनके अंदर अपनी बात को कहने का साहस और उसे लोगों तक पहुँचाने की जबर्दस्त क्षमता थी।

हिन्दी के जाने माने लेखक और साहित्यकार पं. रामचंद्र शुक्ल ने पं. श्रध्दाराम शर्मा और भारतेंदु हरिश्चंद्र को हिन्दी के पहले दो लेखकों में माना है। पं.श्रध्दाराम शर्मा हिन्दी के ही नहीं बल्कि पंजाबी के भी श्रेष्ठ साहित्यकारों में थे, लेकिन उनका मानना था कि हिन्दी के माध्यम इस देश के ज्यादा से ज्यादा लोगों तक अपनी बात पहुँचाई जा सकती है। पं. श्रध्दाराम का निधन 24 जून 1881 को लाहौर में हुआ।
ओम जय जगदीश की आरती

ओम जय जगदीश, स्वामी जय जगदीश हरे
भक्त जनों के संकट, क्षण में दूर करे
जो ध्यावे फल पावे, दुःख बिनसे मन का
सुख-सम्पति घर आवे, कष्ट मिटे तन का

मात पिता तुम मेरे, शरण गहूँ मैं किसकी
तुम बिन और न दूजा, आस करूं मैं जिसकी

तुम पूरण परमात्मा, तुम अंतर्यामी
पारब्रह्म परमेश्वर, तुम सब के स्वामी

तुम करुणा के सागर, तुम पालनकर्ता
मैं सेवक तुम स्वामी, कृपा करो भर्ता

तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति
किस विधि मिलूं दयामय, तुमको मैं कुमति

दीनबंधु दुःखहर्ता, तुम रक्षक मेरे.
करुणा हस्त बढ़ाओ, द्वार पडा तेरे

विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा
श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ, संतन की सेवा

ओम जय जगदीश, स्वामी जय जगदीश हरे

मंगलवार, 25 अगस्त 2009

हवन से पाएँ सेहत की नियामत



NDNDकल तक यज्ञ-हवन को आध्यात्मिक बताकर तमाम नास्तिकों द्वारा सिरे से खारिज कर देने वालों को अब स्वस्थ जीवन और प्रदूषणमुक्त वातावरण के लिए यज्ञ और हवन की शरण में जाना ही पड़ेगा। यह अब केवल ऋग्वेद में उल्लिखित प्राचीन सत्य ही नहीं है बल्कि आधुनिक वैज्ञानिकों ने इसे 21वीं शताब्दी में परिक्षण की कसौटी पर कस कर फायदेमंद साबित कर दिखाया है।

एनबीआरआई के वैज्ञानिकों ने इस सत्य के पक्ष में वर्ष 2007 में तथ्य और प्रमाण जुटाए पर अग्निहोत्र के नाम पर बीते छह दशक से आहुतियों के असर का प्रयोग अनवरत जारी है। दूसरी ओर सिद्धार्थनगर जनपद में वेद विद्यापीठ चला रहे तेजमणि त्रिपाठी एक दशक से लोगों को यज्ञ और हवन से लाभ तो दिला ही रहे हैं साथ ही साथ आहुतियों और हवन के असर का अहसास कराने में जुटे हुए हैं ।

लखनऊ स्थित राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान (एनबीआरआई) के वैज्ञानिकों ने इस क्षेत्र में काफी काम किया है । हरिद्वार के गुरुकुल काँगड़ी फार्मेसी के सहयोग से उन्होंने बीते साल हरिद्वार में हवन कार्य की सहायता से यह निष्कर्ष जुटाने में कामयाबी पाई है कि वायुमंडल में व्याप्त 94 फीसदी जीवाणुओं को सिर्फ हवन द्वारा नष्ट किया जा सकता है। इतना ही नहीं एक बार हवन करने के बाद तीस दिन तक उसका असर रहता है।

एनबीआरआई के वैज्ञानिक चंद्रशेखर नौटियाल कहते हैं, 'हवन के माध्यम से बीमारियों से छुटकारा पाने का जिक्र ऋग्वेद में भी है। करीब दस हजार साल पहले से भारत के साथ-साथ अन्य देशों में भी हवन की परंपरा चली आ रही है जिसके माध्यम से वातावरण को प्रदूषण मुक्त बनाया जा सकता है।'

एनबीआरआई के दो अन्य वैज्ञानिक पुनीत सिंह चौहान और यशवंत लक्ष्मण नेने ने भी डॉ. नौटियाल के साथ हवन के स्वास्थ्य और वातावरण पर प्रभाव पर शोध किया है। इनके लंबे-चौड़े शोध प्रबंध का छह पेज का सार यह बताता है कि हवन में बेल, नीम और आम की लकड़ी, पलाश का पौधा, कलीगंज, देवदार की जड़, गूलर की छाल और पत्ती, पीपल की छाल और तना, बेर, आम की पत्ती और तना, चंदन की लकड़ी, तिल, जामुन की कोमल पत्ती, अश्वगंधा की जड़, तमाल यानि कपूर, लौंग, चावल, जौ, ब्राम्ही, मुलैठी की जड़, बहेड़ा का फल और हर्रे के साथ-साथ तमाम औषधीय और सुगंधित वनस्पतियों को डालकर बंद कमरे में हवन करने से 94 फीसदी जीवाणु मर जाते हैं।

एनबीआरआई के वैज्ञानिकों ने हवन का प्रभाव भले ही दो वर्ष पहले साबित करने में कामयाबी पाई हो लेकिन तकरीबन छह दशकों से अधिक समय से महाराष्ट्र के शिवपुर जिले के वेद विज्ञान अनुसंधान संस्थान के लोग अग्निहोत्र पात्र में हवन को वातावरण को प्रदूषणमुक्त बनाने के साथ-साथ अच्छी सेहत के लिए जरूरी बताते चले आ रहे हैं।

संस्थान के निदेशक डा. पुरुषोत्तम राजिम वाले ने विशेष बातचीत में कहा, 'साठ-सत्तर देशों में हम लोग हवन के फायदे का प्रचार कर चुके हैं। परमसदगुरु श्री गजानन महाराज ने विश्व भर में हवन का महत्व बताने के लिए यह अभियान शुरू किया था लेकिन अब माइक्रोबायलॉजी से जुड़े तमाम वैज्ञानिक ही नहीं कृषि वैज्ञानिक भी अपने शोधों के माध्यम से यह साबित करने में कामयाब हुए हैं कि हवन से सेहत और वातावरण के साथ-साथ कृषि की उपज को भी बढ़ाया जा सकता है।'


NDNDमाइक्रोबायलॉजी के वैज्ञानिक डॉ. मोनकर ने हवन के प्रभावों के अध्ययन के बाद यह साबित करने में कामयाबी पाई है कि हवन के बाद जो वातावरण निर्मित होता है उसमें विषैले जीवाणु बहुगुणित नहीं हो पाते और बेअसर हो जाते हैं। एसटाईपी नामक प्राणघातक बैक्टीरिया हवन के बाद के वातावरण में सक्रिय ही नहीं रह पाता।

इतना ही नहीं, वेद विज्ञान अनुसंधान संस्थान के लोगों की मानें तो दिल्ली में रक्षा मंत्रालय के शोध एवं विकास विंग के कर्नल गोनोचा और डॉ. सेलवराज ने भी साबित किया है कि हवन में शामिल लोगों के नशे की लत भी दूर की जा सकती है। मन-मस्तिष्क में सकारात्मक भाव और विचारों का प्रादुर्भाव होता है। पूना विश्वविद्यालय के वनस्पति विज्ञान के वैज्ञानिक डॉ. भुजबल का कहना है, 'अग्निहोत्र देने से जैविक खेती की उपज बढ़ने के भी प्रमाण मिले हैं।

शनिवार, 22 अगस्त 2009

ये मंत्र जपो, आगे बढ़ो


श्री गणेश बुद्धि, ज्ञान, सफलता और समृद्धि के देवता हैं। उनके मंत्र के जरिए युवा वह सब पा सकते हैं जिसकी वे इच्छा करते हैं। ये सात मंत्र वि‍श्वास के साथ जपने से आपको आत्‍मवि‍श्वास मि‍ल सकता है जो आपको करि‍यर बनाने में सबसे ज्‍यादा मदद करता है। श्रीगणेश के मंत्र वस्‍तुत: सि‍द्धि‍ मंत्र हैं। हर मंत्र में श्रीगणेश की एक खास शक्ति‍ वि‍द्यमान है। इन मंत्रों को सही वि‍धि‍ और सही उच्‍चारण के साथ कि‍या जाए तो इसके कई लाभ मि‍लते हैं। यह भी जरूरी है कि‍ इन मंत्रों को पूरी आस्‍था और श्रद्धा से कि‍या जाना चाहि‍ए।


WDWD1. ओम श्रीगणेशायनमः

यह मंत्र एक सकारात्मक और शुभ शुरुआत के लिए उपयोगी है। आपका चाहे कोई प्रोजेक्ट हो, रिसर्च पेपर हो या करियर या फिर कोई अन्य काम, इस मंत्र के जाप से आप सफलता अर्जित कर सकते हैं।

2. ओम गम गणपतये नमः

इस मंत्र की सहायता से आप सुप्रीम नॉलेज और शांति से गहरे जुड़ सकते हैं। बिना किसी रुकावट के आप सफलता पा सकते हैं।

3. ओम विनायकाय नमः

इस मंत्र के जाप से आप अपने कॉलेज, क्लास, ऑफिस या वर्क प्लेस पर शिखर पर पहुँच सकते हैं यानी वह पोजिशन हासिल कर सकते हैं, जहाँ सब कुछ आपके नियंत्रण में होता है यानी शीर्ष पर। विनायक का अर्थ है सब कुछ आपके नियंत्रण में है।

4. ओम विघ्ननाशायनमः

जिंदगी और करियर में तमाम तरह की बाधाएँ आती हैं। इस मंत्र का लगातार जाप करने से आप, आपकी बॉडी और कॉस्मोस की रुकी ऊर्जा बह निकलती है और आप पूरी कुशलता और कार्यक्षमता के साथ अपने लक्ष्यों को हासिल कर लेते हैं।

5. ओम सुमुखायनमः

इस मंत्र का अर्थ है कि मुख ही नहीं, आपकी भावना, आपका मस्तिष्क, आपका मन और आत्मा सुंदर होना चाहिए। उनमें आने वाले भाव और इच्छाएँ सुंदर हों। इसलिए भीतरी सुंदरता होगी तो वह मुख पर प्रकट होगी और आप जो कहेंगे, वह सुंदर होगा, प्रेरणास्पद होगा।

6. ओम क्षिप्र प्रसादायनमः

किसी भी तरह की आशंका, संकट,निगेटिव इनर्जी होगी तो आप इस मंत्र के जरिए उसे दूर सकते हैं। सारी बाधाओं से पार पा सकते हैं। इस मंत्र से तुरंत आशीर्वाद मिलता है।

7. ओम वक्रतुण्डाय हूं

जब स्थिति आपके नियंत्रण से बाहर हो या लोग आपके बारे में नकारात्मक विचार रखते हों या आप हताश और निराश हों तो इस मंत्र का जाप करें। इससे लाभ मिलेगा यानी तुरंत प्रसाद मिलेगा।

इन मंत्रों को जपने से तमाम तरह की बाधाओं और बुरी शक्ति‍यों से मुक्ति‍ मि‍लती है। इन मंत्रों से सकारात्‍मक ऊर्जा प्रवाहि‍त होती है और आशीर्वाद स्‍वरूप सफलता, समृद्धि‍, बुद्धि‍ और ज्ञान हासि‍ल होता है।

सोमवार, 17 अगस्त 2009

हवन से खेती


हवन से खेती

हालाँकि मुझे टोने- टोटके मैं कभी भी विश्वास नहीं रहा लेकिन सोलन जिले के बसाल गाँव के सुरेन्द्र ठाकुर को उस रोज जब मैंने खेत किनारे शाम के समय हवन करते हुए देखा तो पल भर के लिए मेरे रोंगटे खड़े हो गए थे यह सोच कर कि कोई तांत्रिक तंत्र साधना कर रहा है. उस वक्त तो मारे डर के मैं वहाँ से खिसक लिया लेकिन अगले रोज जब वोह मुझे मिले तो मैंने पूछ ही लिया कि कल क्या हो रहा था..? ठाकुर शायद मेरी जिज्ञासा भांप गए थे लिहाज़ा तपाक से बोले डरने की कोई बात नहीं है मैं तो फसलों के लिए हवन कर रहा था. मुझे लगा ठाकुर साहब मुझे टाल रहे हैं लेकिन इसी बात की चर्चा जब मैंने उनके दोस्त के एन शर्मा से की तो मुझे भी विश्वास नहीं हुआ.

सुरेन्द्र ठाकुर ने ठीक कहा था वोह वास्तव मैं ही उन्नत फसल के लिए हवन कर रहे थे. जी हाँ यह सच है …जिस तरह आप अपने घर और ग्रहों की शान्ति के लिए हवन करते हैं ठीक उसी तरह अब फसलों के लिए भी हवन करके उन्हें उन्नत और रोगमुक्त बनाया जा सकता है. खास तौर पर सोलन जिले मैं करीब दो सौ उन्नत किस्सान -बागवान इस तकनीक को अपनाए हुए हैं और रोज सुरेन्द्र ठाकुर की तरह सुबह शाम खेतों मैं हवन करते हैं. बागवानी विभाग से बतौर उप निदेशक सेवानिवृत हुए के एन शर्मा ने ही इस तकनीक को इन लोगों तक पहुँचाया है. बतौर शर्मा यह कोई नयी तकनीक नहीं है बल्कि सदियों पहले हमारे पूर्वज इसका इस्तेमाल करते रहे हैं बीच मैं यह लुप्त हो गयी और अब इसे पुनः प्रचलन मैं लाया जा रहा है. इसके लिए एक खास तरह की हवन सामग्री इस्तेमाल की जाती है जिसमें 16 किस्म की जडी-बूटियाँ डलती हैं. इनमें गुग्गल, नीम,लेमन ग्रास, कपूर बेल. सफेदा रत्न जोत और चंदन प्रमुख है.

इन सभी जडी-बूटियों से बनी इस सामग्री का हवन खेतों मैं करने से जो सबसे बड़ा लाभ देखने मैं सामने आया है वोह यह की इससे फसल पर तीन तरह का असर पड़ा है. पहला इस हवन का धुआं फसलों पर कीटों को फटकने नहीं देता दूसरे यदि पहले से कीटों की बजह से बीमारी लगी है तो उसे नष्ट करता है और इन दो कारणों से तीसरा अहम् प्रभाव यह पड़ता है की एक समय के बाद खेत मैं उगने वाली फसल पूरी तरह जैविक हो जाती है क्योंकि इस हवन के बाद किसी भी किस्म के रासायनिक कीटनाशक का छिडकाव नहीं करना पड़ता. वैसे इसकी कीमत के चलते भी यह हवन दूसरे कीटनाशकों पर भारी पड़ रहा है. आम तौर पर यदि एक एकड़ मैं किसी भी सब्जी या फलों की फसल पर रासायनिक कीटनाशकों की छिडकाव करनी हो तो चार-पाँच हज़ार का खर्च बैठता है. यहाँ तक की मेटासिड,रीगरऔर थायोडान जैसे सस्ते कीटनाशक भी प्रति छिडकाव 300 रूपये से कम मैं नहीं पड़ते जबकि इस हवन सामग्री का दाम 120 रूपये है और एक एकड़ मैं आधा किलो से एक छिडकाव पूरण हो जाता है. इस तरह से जहाँ जैविक फसल प्राप्त होती है वहीं किस्सान-बागवान महंगे कीटनाशकों से भी बच जाता है.

लेकिन इस हवन के लिए इसे जलाने का समय काफी अहम् है. के.एन शर्मा के अनुसार यह हवन सुबह सूर्योदय से कुछ पहले और शाम सूर्य अस्त के ठीक बाद करना ही हितकर है. इसके पीछे वैज्ञानिक आधार यह है की फसलों पर कीटों का हमला ठीक इसी समय होता है. कीट-पतंगे दिन मैं सूर्य की तपिश के चलते खेतों मैं हमला नहीं करते और अपना काम सूरज उगने और छिपने के बाद करते हैं…ऐसे मैं ठीक इसी समय हवन करने से उनको खेत पर हमला करने से रोका जा सकता है और एक अरसे के बाद वोह फ़िर कभी उस खेत का रूख नहीं करते जहाँ इस तरह का हवन होता है. हालाँकि खुले मैं इस हवन का सामूहिक तौर पर किया जाना भी बांछित है ताकि पूरे तौर पर लाभ पाया जा सके यानि यदि आसपास के सभी खेतों मैं इसे एकसाथ किया जाए तो खुले खेतों मैं भी इसका लाभा संवरण किया जा सकता है ,लेकिन पलीहाऊस मैं खेती करने वालों के लिए तो यह हवन किसी वरदान से कम नहीं है. क्योंकि पालीहाऊस मैं आप इसका धुआं बाहर जाने से रोक सकते हैं लिहाज़ा कम मात्र मैं हवन जलाने पर भी इसका अधिक लाभ लिया जा सकता है.

पलीहाऊस मैं महीने मैं दो बार हवन करने से भी उत्साहित परिणाम सामने आए हैं जबकि खुले खेत मैं एक माह मैं कम से कम चार बार हवन जरूरी है. सोलन और उसके आसपास इस वक्त करीब एक लाख वर्ग मीटर मैं पालीहाऊस हैं और अधिकाँश इस अनूठी तकनीक के सस्ते निवेश से जैविक सब्जी और दूसरी फसलें प्राप्त कर चोखी कमाई कर रहे हैं. एम् कॉम करके फूलों की खेती मैं उतरे नीरज के अनुसार इस तकनीक ने उनकी दुनिया ही बदल दी है. नीरज के अनुसार शुरू मैं उन्हें यह सब बकवास लगा लेकिन जब कई लोगों को इस तरह करते देखा तो सोचा प्रयोग करने मैं क्या हर्ज़ है लिहाज़ा उन्होंने भी अपने दो पलीहूसओं मैं यह हवन शुरू किया . हालाँकि पूरे नतीजे मिलने मैं साल लग गया लेकिन जो नतीजे सामने आए वोह चौंकाने वाले थे.

अन्य जगहों की तुलना मैं इन पाली हाऊस मैं उगे फूल न सिर्फ़ बेहतर थे बल्कि ज्यादा मात्रा मैं भी उगे थे..जबकि रासायनिक छिडकाव वाले पलीहाऊस मैं फूलों के आकार और उनके झड़ने की समस्या पहले जैसी थी. नीरज अब अपने तमाम पालीहौसों मैं इसी हवन का इस्तेमाल कर रहे हैं. हँसते हुए वोह कहते हैं इससे मुझे दोहरा फायदा हुआ है मेरा कारोबार सालाना तीन लाख से चार लाख पहुँच गया है, लागत भी कम हुयी है और सबसे बड़ी बात कि मैं इस उम्र मैं ही आध्यात्मिक हो गया हूँ जिसका सीधा फर्क मेरी दिनचर्या पर पड़ा है.

चूंकि हवन का समय तये है लिहाज़ा सुबह सबेरे उठने के स्वास्थ्यवर्धक लाभ स्वतः प्राप्त हो रहे हैं. नीरज की ही तरह कुठार गाँव की बन्ती देवी भी हवन से खेती के फायदे गिनाते नहीं थकतीं. उधान विभाग से क़र्ज़ लेकर बन्ती देवी ने अपनी दो बीघा जमीन पर पीली शिमला मिर्च की खेती शुरू की थी लेकिन फसल के अच्छे दाम मिलने के बाबजूद उतना नफा नहीं हो पा रह था क्योंकि फसल की देखभाल के लिए प्रयुक्त होने वाले कीटनाशकों पर बहुत पैसा खर्चना पड़ता था…पर हवन ने तो मेरी दुनिया ही बदल दी…बन्ती बताती हैं…..इससे मेरा उत्पादन खर्च आधा हो गया है और अब मुझे इस बात की चिंता नहीं सताती कि कि कहीं कर्ज़ की किश्त न टूट जाए. फिलहाल यह हवन राजस्थान मैं उत्पादित हो रहा है और वहां की एक संस्था इसका निर्माण करती है लेकिन माहिरों के अनुसार चूंकि इसमें पड़ने वाली अधिकाँश जडी-बूटियाँ हमारे यहाँ भी पाई जाती हैं लिहाज़ा यदि किसान चाहें तो इसे ख़ुद भी त्यार कर सकते हैं.

उधान विभाग के पूर्व उपनिदेशक के एन शर्मा और उधान प्रसार अधिकारी रत्तन सिंह के अनुसार यदि आप इस हवन के साथ प्राचीन वेदों मैं वर्णित अग्निहोत्र का भी प्रयोग करें तो मामला सोने पे सुहागे वाला हो सकता है. . अग्निहोत्र ताम्बे के एक ख़ास ऊर्जा प्रवाहित करने वाले कोणयुक्त पात्र मैं गोघृत और चावल के दानो से किया जाता है.गाए के उपले को जलाकर उस पर सुबह शाम मात्र एक आहुति डाल कर किसी भी बड़े हवन सरीखा लाभ प्राप्त किया जाता है. मुख्य रूप से वातावरण की शुधि से सम्बंधित अग्निहोत्र मैं सूर्योदय के समय सुर्याए स्वाहा….सूर्य इदम..प्रजापतये स्वाहा …प्रजापतये इदम -न-मम मन्त्र बोला जाता है जबकि सूर्यास्त के समय किए जाने वाले अग्निहोत्र मैं अग्नये स्वाहा..अग्नये इदम-न-मम प्रजापतये स्वाहा..प्रजापतये इदम-न-मम बोलना होता है. इस छोटे से अग्निहोत्र का अभूतपूरव लाभ इसके पात्र मैं छिपा है जो अपने खास कोण के कारण इसमें पैदा होने वाली ऊर्जा को कई हज़ार गुणा बढाकर उदवाहित करता है. और आपको बता दें कि यह मात्र अंधविश्वास नहीं है बल्कि बाकायदा विज्ञान भी इसे मानता है. हिमाचल मैं ही पालमपुर कृषि विशाव्विदाल्या मैं जर्मनी के संयुक्त तत्वाधान मैं अग्निहोत्र खेती का एक प्रोजेक्ट इस समय चल रहा है जिस मैं अग्निहोत्र के सविस्तार लाभों का आकलन किया जा रहा है.

हवन से स्वाहा होतीं हैं बीमारियां



लखनऊ। वैदिक काल से ही हवन को महत्वपूर्ण माना गया है। यही वजह है कि तमाम धार्मिक विद्वान पूजा में थोड़ा ही सही पर रोज हवन करने की सलाह देते रहे हैं। बढ़ रहे प्रदूषण से निजात पाने के लिए वैज्ञानिकों ने भी अपने शोध को हवन पर केंद्रित किया और अच्छे नतीजे पाए। ऐसे ही एक शोध का निष्कर्ष है कि अगर आप स्वस्थ रहना चाहते हैं और अपने घर को जीवाणु मुक्त रखना चाहते हैं तो प्रतिदिन हवन कीजिए।

लखनऊ स्थित राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान [एनबीआरआई] के वरिष्ठ वैज्ञानिक चंद्रशेखर नौटियाल द्वारा किया गया यह शोध कार्य अन्तरराष्ट्रीय पत्रिका सन डायरेक्ट ने प्रकाशित किया है। इसमें कहा गया है कि हवन के दौरान अग्नि से निकलने वाला धुआं वातावरण को शुद्ध करता है। ये धुआं हवा में पाए जाने वाले जीवाणुओं को नष्ट करने के साथ ही बीमारियों की आशंकाओं को भी कम करता है।

नौटियाल के मुताबिक लकड़ी और औषधीय जड़ी बूटियां जिनको आम भाषा में 'हवन सामग्री' कहते हैं, को एक साथ जलाने से वातावरण मे जहां शुद्धता आती है वहीं 94 प्रतिशत तक रोगजनक जीवाणु नष्ट हो जाते हैं।

ऋगवेद में भी बताया गया है कि प्राचीन काल में साधु-संत वातावरण की शुद्धि के लिए यज्ञ किया करते थे। यह बात अब वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी यह सच साबित हो चुकी है। इस तथ्य की पुष्टि के लिए एनबीआरआई के वैज्ञानिकों की टीम ने एक बंद कमरे में हवन करके यह प्रयोग किया। इस प्रयोग में पांच दर्जन से ज्यादा जड़ी बूटियों के मिश्रण से तैयार हवन सामग्री का इस्तेमाल किया गया।

नौटियाल ने कहा कि उन्होंने हवन के बाद और हवन के पहले के नमूने लिए। जिनका अध्ययन करने पर यह साबित हो गया कि हवन से हानिकारक जीवाणु नष्ट होने के साथ ही वातावरण भी शुद्ध होता है। प्रयोग के बाद यह भी पता लगा कि लकड़ी को अकेले जलाने पर जीवाणुओं की मात्रा में कोई कमी नहीं आई। लकड़ी को जड़ी बूटियों के साथ [हवन सामग्री] जलाने पर ही यह प्रयोग कारगर साबित हुआ। प्रयोग के 30 दिन बाद तक कमरे में धुएं का असर दिखाई दिया और जीवाणुओं की मात्रा अपेक्षाकृत कम पाई गई।

शुक्रवार, 14 अगस्त 2009

नेपाली प्रचंड नेपाल विरोधी है

14-08 2009
नेपाली परम्परा के अनुसार
नेपाल से आने वाले विशेष मेहमानों को दूतावास के परिसर में ही बनाए गए एक मंदिर में ले जाने की परंपरा है. जब अधिकारियों ने प्रचंड से वहाँ चलने का आग्रह किया तो उन्होंने इनकार तो नहीं किया, पर वो मंदिर जाने की बजाए लॉन में टहल कर इमारत में लौट आए।
http://www.bbc.co.uk/hindi/southasia/2009/08/090814_prachanda_rajesh_ms.shtml

इस घटना से सभी नेपाली सभ्यता संस्कृती को प्यार करने वाले लोगो को कष्ट है.
हां हम सब को पता है वे मावों वादी विचार धारा के है. नेपाली विचार धारा का इस तरह अपमान करने का उनको कोई अधिकार नही । प्रचंड को सीखना चाहिए किस तरह से दुसरे विचारो का सम्मान किया जाता है । उनको पुरी तरह नेपाली होना चाहिए । नेपाल को प्यार करके ही वो नेपाली हो सकते है। नही बेगुनाह , कमजोर लोगो की हत्यावो से ।

नेपाली प्रचंड नेपाल

'न बिजली है न पानी, फिर भी दिल है पाकिस्तानी।'

नई दिल्ली। अपनी जिद और धर्म को आधार बनाकर मुहम्मद अली जिन्ना ने पाकिस्तान तो बना लिया, लेकिन समय न मिल पाने के कारण अपने मुल्क को कोई दिशा नहीं दे सके। व्यक्तिगत जीवन में हमेशा धर्मनिरपेक्ष रहे जिन्ना का पाकिस्तान हमेशा भारत विरोध और चरमपंथी विचारधारा से शासित होता रहा। और आजादी मिलने के छह दशक बाद भी इसका खामियाजा पाकिस्तान की जनता भुगतने को अभिशप्त है।

दुनिया के मानचित्र पर पाकिस्तान को आए 62 साल हो चुके हैं। लेकिन वहां की जनता जम्हूरियत और नागरिक स्वतंत्रता के अधिकारों से आज भी कोसों दूर है। राजनैतिक अस्थिरता, सैन्य शासन और कंट्टरपंथियों के दबदबे से पाकिस्तान कभी वह पाकिस्तान बन ही नहीं सका, जिसका सपना कायदे आजम मुहम्मद अली जिन्ना ने की थी। लोगों को आज भी इस बात का रंज है कि पाकिस्तानी नेता जिन्ना के स्वप्न को साकार कर ही नहीं सके। स्वतंत्रता दिवस पर लोगों का गुस्सा फूट पड़ा और इसका लोगों ने अलग-अलग ढंग से इजहार भी किया।

एक ब्लाग में लिखा है, 'हमें खेद है जनाब जिन्ना, कि हम आपके नजरिए को हकीकत में तब्दील नहीं कर पा रहे।' अमेरिकी शिक्षाविद आदिल नजम के इस संदेश में 11 अगस्त 1947 को दिए जिन्ना के भाषण के अंश भी हैं। इसमें जिन्ना ने कहा था कि हर व्यक्ति की अपनी आस्था होती है। इस लिहाज से हिंदू, हिंदू और मुसलमान, मुसलमान ही रहेगा। लेकिन समय बीतने के साथ राजनीति रूप से वे पाकिस्तान के नागरिक कहा जाएगा। हाल ही में पंजाब के गोजरा क्षेत्र में हुई सांप्रदायिक हिंसा में कम से कम 8 ईसाई मार दिए गए और 50 घर जला दिए गए थे।

नजम के मुताबिक 'जिन्ना के सहिष्णु पाकिस्तान के सपने को घिसा-पिटा बताकर उनके दृष्टिकोण को नजरअंदाज कर दिया गया। हमें गोजरा के लिए अफसोस है जिन्ना साहब। और यह हर दिन पाकिस्तान में होता है।

वहीं अमेरिका में पाकिस्तान के राजदूत हुसैन हक्कानी की 14 वर्षीय बेटी मीरा हुसैन हक्कानी ने 'अल्लाह के नाम खत' लिखा है। अखबार 'द न्यूज' में प्रकाशित इस पत्र में मीरा लिखती हैं, 'आजादी मिलने के 62 साल बाद भी पाकिस्तान खौफजदा है। भले ही उसके पास काफी जमीन है। लेकिन वह तबाह हो चुका है। उसके पर्वत कमजोर और बेसहारा हैं। गोलियों तथा बम धमाकों के कारण कभी खूबसूरत रही इसकी वादियां खाक में मिल चुकी हैं। उसके बच्चे भूखे हैं और आंसू बहा रहे हैं। यही पाकिस्तान है।'

चर्चित फिल्म 'खुदा के लिए' के लिए मुख्य अभिनेता शान कहते हैं कि उनके पास जश्न मनाने का कोई कारण नहीं है। कुछ भी ऐसा नहीं है जिसपर नाज किया जा सके।' जैसा कि गायक अली जफर कहते हैं, 'न बिजली है न पानी, फिर भी दिल है पाकिस्तानी।'

पाकिस्तान हिंदू अमेरिका

हिन्दू वहाँ लूट लिए जाते हैं लेकिन पुलिस उनकी रिपोर्ट तक नहीं लिखती। अल्पसंख्यकों के नाम पर भारत में मुस्लिमों को जितनी सुविधाएँ प्राप्त हैं उसकी एक फीसदी भी हिन्दूओं को पाकिस्तान में प्राप्त नहीं हैं। डॉक्टर साहब जो पाकिस्तान के साथ ही ब्रिटेन से भी पढ़े हैं, बताते हैं कि वहाँ पार्टिशन (बँटवारे) के समय की हिन्दूओं की कोठियाँ, बड़े-बड़े बंगले खाली पड़े हैं। बस्ती वाले उनमें अपने भेड़, बकरियाँ बाँधते हैं या खुद रहते हैं। बड़ी-बड़ी इमारतों का नाम भगवानदास बिल्डिंग, राधे-श्याम कॉम्प्लेक्स लिखा हुआ है। सब धीरे-धीरे खंडहर होती जा रही हैं। मंदिर तो सभी समाप्त होते जा रहे हैं, नया मंदिर बनने नहीं दिया जाता। वहाँ से हमारा इतिहास मिट रहा है। हिन्दू लड़कियाँ जबरन भगा ली जाती हैं, उनसे मुस्लिम युवक जबरदस्ती शादी कर लेते हैं, लेकिन वहाँ का समाज ऐसे युवकों का स्वागत करता है, उनके खुद भी दो बेटियाँ हैं इसलिए उन्होंने भविष्य की सोचकर पाकिस्तान को त्याग दिया। यहाँ आकर उनका कहना है कि ये पूरा हिन्दोस्तान तो नहीं लगता। यहाँ सभी धर्म के लोगों को बहुत छूट है भाई। ऐसा हरेक देश नहीं कर सकता।

दोस्तों, उनसे मेरी काफी बातें हुई थीं, जैसे-जैसे याद आती जाएँगी मैं आप लोगों को बताता रहूँगा लेकिन जो बातें मुझे अमेरिकी केन्द्रित लगीं वो रोचक हैं। वो महादेश दूर बैठे भी गिद्ध की निगाह से अपने दुश्मनों को देख रहा है, समझ रहा है और उन्हें मार रहा है।
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दोस्तों, कल की पोस्ट में मैंने आपको अमेरिका के कदम के बारे में बताया था जो उसने पिछले आठ साल में उठाए। वो मुस्लिम आबादी को कंट्रोल करने की कोशिश में लगा है। उसका शोध जारी है। मजे की बात है कि यह बात कई पाकिस्तानियों को भी पता है और वो उसके शोध में शामिल भी रहते हैं, सिर्फ पैसे की खातिर।
सबसे पहले बात अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की। बराक के पिता कनवरटेड मुस्लिम थे। यह सभी जानते हैं। बराक का पूरा नाम भी बराक हुसैन ओबामा है। लेकिन अमेरिकी जनता और वहाँ के थिंक टैंक को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। अमेरिका जनता या अमेरिकी थिंकटैंक को जिस दिन यह लग गया कि ओबामा इस्लाम या अश्वेतों का पक्ष ले रहे हैं तो समझो वो गए, अपने आप किनारे कर दिए जाएँगे। क्योंकि इतिहास गवाह है कि अमेरिकी राष्ट्रपति तो बदल सकता है लेकिन अमेरिकी नीतियाँ नहीं, इसी रौ में बहते हुए बराक ने ईरान के सामने दोस्ती का हाथ बढ़ा दिया। मैंने सोचा ये राष्ट्रपति इतना लिबरल कैसे है..?? क्या अमेरिकी प्रशासन यह सब नहीं देख रहा। लेकिन पता चला कि पाकिस्तान में शिया आबादी मात्र 15 फीसदी है। बाकी 85 फीसदी लोग सुन्नी हैं। आपसी झगड़ों में शिया सबसे अधिक मारे जाते हैं।

पाकिस्तान की सीमा अफगानिस्तान और ईरान से लगती हैं। अफगानिस्तान पर अमेरिका का कब्जा है। ईराक पर भी अमेरिकी कब्जा है। दोनों देशों की सीमाएँ ईरान से मिलती हैं। ऐसे में अमेरिका इस बात पर जोर देगा कि मैंने तुम्हें (ईरान) को घेर तो रखा ही है, इसलिए हमारे से झगड़ा छोड़ो और पाकिस्तान को देखो जो तुम्हारे भाईयों को मार रहा है। उल्लेखनीय है कि ईरान दुनिया का एकमात्र शिया देश है। पाकिस्तान सुन्नी देश है। और सिर्फ इसी कारण ईराक और ईरान भी आपस में 8 साल तक लड़ते रहे थे। शिया-सुन्नी आधार पर। अमेरिका ने शियाओं का एक कारण से और दिल जीता है, उसने ईराक की सत्ता ली तो सुन्नियों के हाथों से (सद्दाम हुसैन सुन्नी था) लेकिन थमा दी शियाओं के हाथों में, भले ही ईराक का वर्तमान प्रशासन अमेरिका के हाथों की कठपुतली हो लेकिन वो है तो शिया ही। अगर यह बात अमेरिका ईरान को समझाने में कामयाब रहा तो वो ईरान और पाकिस्तान को आपस में लड़ाने में कामयाब हो सकता है ( विदित हो कि ईरान-ईरान का युद्ध भी अमेरिका ने ही शुरू कराया था और तब उसने सद्दाम को साथ दिया था और बाद में उसे मार भी दिया), इसके ईनाम में वो ईरान को यह आश्वासन दे सकता है कि वो इजराइल की ओर से टेंशन छोड़ दे, उसे वो संभाल लेगा। क्योंकि इजराइल पहले से ही कई मोर्चों पर व्यस्त रहता है।

दोस्तों, सिर्फ इतनी ही नहीं है अमेरिकी प्लानिंग। अमेरिका जानता है कि पाकिस्तान की अवाम उससे भयंकर नफरत करती है। इसलिए वो अंदर से उसे घुन की तरह खा रहा है। जिस दिन अमेरिका पाकिस्तान के ऊपर से अपना हाथ हटा लेगा उस दिन वहाँ सिविल वार या कहें अराजकता की स्थिति आ जाएगी। फिलहाल अमेरिका ने पाकिस्तान पर इतना प्रेशर बना रखा है कि उसकी सेना अपने भाईयों को ही मार रही है। पाकिस्तानी सेना में ऐसे-ऐसे सैनिक हैं जिनकी सीने तक की दाढ़ी है। वो पाँचों टाइम नमाज पढ़ते हैं और संसार के हर मुसलमान को अपना भाई मानते हैं, बावजूद इसके उन्हें अपने भाईयों का मारना पड़ रहा है। बहुत मजबूरी में है अमेरिकी सेना। दूसरी बात, कि अमेरिका की दुनिया भर के मुस्लिम देशों में रिसर्च चल रही है। ये हैल्थ डवलपमेंट या टीकाकरण के नाम पर है। ये शोध वो मुस्लिम देशों की द्रुत गति से बढ़ती हुई जनसंख्या पर कर रहा है। वो लोग चौबीसों घंटे लगे हुए हैं इसका निष्कर्ष निकालने में। मोरक्को से लेकर पाकिस्तान तक में उसका अध्ययन चल रहा है। वो जानना चाहता है उस नफरत को, जो इन देशों के मन और मानस में भरी हुई है। वो इस्लाम धर्म की इंजीनियरिंग भी समझ रहा है जिसमें अन्य किसी को भी मंजूर नहीं किया जाता। आने वाले समय में हमें उसके कदमों से इस शोध के परिणामों को समझने में मदद मिलेगी। हमें उससे सीख लेनी चाहिए क्योंकि वो कई दशकों और शताब्दियों आगे की प्लानिंग करके चल रहा है। हम वर्तमान में जीते हैं और वो भविष्य में, वो यूँ ही संसार की एकमात्र महाशक्ति नहीं है।

पाकिस्तान जिसका अपना सब खो गया का

aaj pakistan ka janma din hai dharti ke bhaag ko jo kabhai hindustan aryavart bhart kaha jata tha usko kucha bad dimagi netawo ki galti se pakistan pukara jane laga,
mera parashn hai pakistniyat ki chahta me pakistaan ka apna akhir kya bacha, kya pakistaan ki sanskriti, sabhyat sab nahi samapt hogi ajdi ke 63 saal baad bhi pakistan bhukha naga hai galiya aaj bhi bamo ke dhamkese mahlti hai bacha skul jane se darte hai, larkiyo ko aaj bhi skol jane ki manahi hoti hai ku bad dimag hatyaro ke kahne se sarkaar aj bhi samkhouta krti hai inhi loge selok tantra aaj bhi kagjo paar siski leta hai। logo htaye is liye kar di jati hai ki wo pakistaan ki purani sabhyata sanskrti ko bar kaar rkhna chate hai arbiyan sanskriti ko nakarte haai ye hamne kesa pakistaan bnya haai. bagwan ashirwad do pakistaab se phir vedo ka sarva dharma sm bhawa guje
नमस्कार

ब्रह्मण

ब्राह्मण ( विप्र, द्विज, द्विजोत्तम, भूसुर ) हिन्दू समाज की एक जाति है | ब्राह्मण को विद्वान, सभ्य और शिष्ट माना जाता है। एतिहासिक रूप से हिन्दू समाज में, व्यवसाय-आधारित चार वर्ण होते हैं। ब्राह्मण ( आध्यात्मिकता के लिए उत्तरदायी ), क्षत्रिय (धर्म रक्षक), वैश्य (व्यापारी व कॄषक वर्ग) तथा शूद्र ( शिल्पी, श्रमिक समाज ) । व्यक्ति की विशेषता, आचरण एवं स्वभाव से उसकी जाति निर्धारित होती थी । विद्वान, शिक्षक, पंडित, बुद्धिजीवी, वैज्ञानिक तथा ज्ञान-अण्वेषी ब्राह्मणों की श्रेणी में आते थे |

यस्क मुनि की निरुक्त के अनुसार - ब्रह्म जानाति ब्राह्मण: -- ब्राह्मण वह है जो ब्रह्म ( अंतिम सत्य, ईश्वर या परम ज्ञान ) को जानता है। अतः ब्राह्मण का अर्थ है - "ईश्वर ज्ञाता" | किन्तु हिन्दू समाज में एतिहासिक स्थिति यह रही है कि पारंपरिक पुजारी तथा पंडित ही ब्राह्मण होते हैं ।

किन्तु आजकल बहुत सारे ब्राह्मण धर्म-निरपेक्ष व्यवसाय करते हैं और उनकी धार्मिक परंपराएं उनके जीवन से लुप्त होती जा रही हैं | यद्यपि भारतीय जनसंख्या में ब्राह्मणों का प्रतिशत कम है, संस्कॄति ज्ञान तथा उद्यम के क्षेत्र में इनका येगदान अपरिमित है |

इतिहास

ब्राह्मण समाज का इतिहास प्राचीन भारत के वैदिक धर्म से आरंभ होता है| मनु स्मॄति के अनुसार आर्यवर्त वैदिक लोगों की भूमि है | ब्राह्मण व्यवहार का मुख्य स्रोत वेद हैं | ब्राह्मणों के सभी सम्प्रदाय वेदों से प्रेरणा लेते हैं | पारंपरिक तौर पे यह विश्वास है कि वेद अपौरुषेय ( किसी मानव/देवता ने नहीं लिखे ) तथा अनादि हैं, बल्कि अनादि सत्य का प्राकट्य है जिनकी वैधता शाश्वत है | वेदों को श्रुति माना जाता है ( श्रवण हेतु , जो मौखिक परंपरा का द्योतक है ) |

धार्मिक व सांस्कॄतिक रीतियों एवम् व्यवहार में विवधताओं के कारण और विभिन्न वैदिक विद्यालयों के उनके संबन्ध के चलते, ब्राह्मण समाज विभिन्न उपजातियों में विभाजित है | सूत्र काल में, लगभग १००० ई.पू से २०० ई.पू ,वैदिक अंगीकरण के आधार पर, ब्राह्मण विभिन्न शाखाओं में बटने लगे | प्रतिष्ठित विद्वानों के नेतॄत्व में, एक ही वेद की विभिन्न नामों की पृथक-पृथक शाखाएं बनने लगीं | इन प्रतिष्ठित ऋषियों की शिक्षाओं को सूत्र कहा जाता है | प्रत्येक वेद का अपना सूत्र है | सामाजिक, नैतिक तथा शास्त्रानुकूल नियमों वाले सूत्रों को धर्म सूत्र कहते हैं , आनुष्ठानिक वालों को श्रौत सूत्र तथा घरेलू विधिशास्त्रों की व्याख्या करने वालों को गॄह् सूत्र कहा जाता है | सूत्र सामान्यतया पद्य या मिश्रित गद्य-पद्य में लिखे हुए हैं |

ब्राह्मण शास्त्रज्ञों में प्रमुख हैं अग्निरस , अपस्तम्भ , अत्रि , बॄहस्पति , बौधायन , दक्ष , गौतम , हरित , कात्यायन , लिखित , मनु , पाराशर , समवर्त , शंख , शत्तप , ऊषानस , वशिष्ठ , विष्णु , व्यास , यज्ञवल्क्य तथा यम | ये इक्कीस ऋषि स्मॄतियों के रचयिता थे | स्मॄतियां में सबसे प्राचीन हैं अपस्तम्भ , बौधायन , गौतम तथा वशिष्ठ |

ब्राह्मण का स्वभाव

समोदमस्तपः शौचम् क्षांतिरार्जवमेव च |
ज्ञानम् विज्ञानमास्तिक्यम् ब्रह्मकर्म स्वभावजम् ||
चित्त पर नियन्त्रण, इन्द्रियों पर नियन्त्रण, शुचिता, धैर्य, सरलता, एकाग्रता तथा ज्ञान-विज्ञान में विश्वा


ब्राह्मण के छह कर्त्तव्य इस प्रकार हैं

अध्यायपानम् अधययनम् यज्ञम् यज्ञानम् तथा | ,
दानम् प्रतिग्रहम् चैव ब्राह्मणानामकल्पयात ||

शिक्षण, अध्ययन, यज्ञ करना , यज्ञ कराना , दान लेना तथा दान देना ब्राह्मण के छह कर्त्तव्य हैं

सावन मास शिव पूजा हॉलैंड फोटो