बुधवार, 8 जुलाई 2009

संत श्री तुलसी दास


तुलसी मीठे बचन ते सुख उपजत चहुँ ओर।

बसीकरन एक मंत्र है परिहरू बचन कठोर।।
बिना तेज के पुरुष की अवशि अवज्ञा होय।

आगि बुझे ज्यों राख की आप छुवै सब कोय।।
तुलसी साथी विपत्ति के विद्या विनय विवेक ।

साहस सुकृति सुसत्यव्रत राम भरोसे एक।।
काम क्रोध मद लोभ की जौ लौं मन में खान।

तौ लौं पण्डित मूरखौं तुलसी एक समान।।
आवत ही हरषै नहीं नैनन नहीं सनेह।

तुलसी तहां न जाइये कंचन बरसे मेह।।
राम नाम मनि दीप धरू जीह देहरी द्वार।

तुलसी भीतर बाहरौ जौ चाहसि उजियार।।

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