मंगलवार, 7 जुलाई 2009

चतुर्मास नीयम व्रत

आचार्य शंकर उपाध्याय गुरु पूर्णिमा तथा चतुर्मास के सम्बन्ध कहा कि वैदिक, बौद्ध व जैन परंपरा में चतुर्मास का बहुत महत्व है। इस दौरान आत्म कल्याण के साथ-साथ साधकों को साधना का अवसर भी मिलता है। वे गुरु पूर्णिमा की संध्या पर पेकेला स्थित आश्रम में श्रद्धालुओं को संबोधित कर रहे थे ।
आचार्य ने कहा कि वर्षा ऋतु में जीव-जंतुओं की व्यापक उत्पत्ति होती है। इस दौरान भ्रमण करने से जीव-जंतुओं की हिंसा होती है। इसलिए प्राचीन काल से ही साधु-संन्यासी चतुर्मास के दौरान स्थिरता का विधान अपनाते है। यह भी साधु जीवन की मर्यादा है।आचार्य ने कहा कि चतुर्मास के दौरान ज्ञान, ध्यान, जप, तप आदि के भाव से स्थिर करके गतिशील रहते है और अवस्थाएं उन्हे मोह-माया के जंजाल से मुक्त रखती है। उन्होंने कहा कि आधुनिक जीवन पद्धति से कीचड़ व बहुजीव की उत्पत्ति जैसी समस्याएं गौण हो गई है और मानव जीवन मस्ती, आनंद का जीवन, जीवन की व्याख्या तथा तनाव से लुप्त हो गए है। ऐसे में चतुर्मास के दौरान गुरुओं के मंगल प्रवचन पाप, ताप व संताप से मुक्ति दिलाते है। उन्होंने कहा कि यह समय मात्र सन्यासियों के लिए ही बल्कि गृहस्थ के लिए भी उपयोगी है।

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