मंगलवार, 15 दिसंबर 2009

पौधे भी कराते हैं खतरे का एहसास

गोरखपुर [गजाधर द्विवेदी]। माना जाता है कि प्राकृतिक आपदाओं की पूर्व सूचना पशु-पक्षी दे देते हैं, लेकिन गोरखपुर विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने अब एक शोध में यह साबित कर दिया है कि किसी भी प्राकृतिक खतरे का पूर्वाभास पौधों को भी हो जाता है और उनमें इससे आने वाले बदलाव से मानव भी सावधान हो सकता है, बस जरूरत है पौधे पर वैज्ञानिक तरीके से पैनी नजर रखने की। यह नतीजे गत 22 जुलाई को सूर्यग्रहण के पूर्व, सूर्य ग्रहण के दौरान और फिर सूर्य ग्रहण के बाद पौधों पर किये गये शोध में सामने आए हैं।

यह शोध महात्मा गांधी पीजी कालेज के जैव प्रौद्योगिकी एवं आणविक जैविकी केंद्र ने किया। शोध दल में केंद्र निदेशक प्रो. एस के प्रभुजी सहित कुल 16 वैज्ञानिकों डा. एसएन लाल, डा. गोपालजी श्रीवास्तव, डा. अतुल श्रीवास्तव, डा. सुबोध वर्मा, डा. भूपेंद्र वर्मा, डा. सिराज वजीह व गन्ना शोध केंद्र के निदेशक डा. जीपी राव तथा डा. राममनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय, फैजाबाद से डा. राजीव गौड़, आशुतोष त्रिपाठी, दीपांजलि श्रीवास्तव, ऋचा श्रीवास्तव, विपिन चतुर्वेदी, अनंत सिंह व गौरव श्रीवास्तव थे।

शोध मुख्यत: दो बिन्दुओं फर्मेन्टेशन [किण्वन] व दूसरा पौधों की प्रतिरोधक

क्षमता पर पड़ने वाले प्रभाव पर था। फर्मेन्टेशन शीरे से शराब बनाने की प्रक्रिया है, जो सूर्य ग्रहण के दौरान पूरी तरह रुक गयी थी। दूसरा महत्वपूर्ण प्रयोग पौधों की प्रतिरोधक क्षमता पर सूर्यग्रहण के प्रभाव के संबंध में प्रभुजी ने 1980 में भी सूर्यग्रहण के दौरान किया था। उन्हें जो नतीजे मिले थे, ठीक वही नतीजे इस बार भी आए। वैज्ञानिकों के अनुसार सामान्य दशा में पौधे की प्रतिरोधक क्षमता रात 12 बजे के आसपास सबसे ज्यादा होती है और धीरे-धीरे कम होते हुए दिन के दो बजे तक आते-आते सबसे कम हो जाती है। सूर्यग्रहण 22 जुलाई को था। वैज्ञानिकों की शोध टीम ने 20 जुलाई से ही पौधों के नमूने लेने शुरू किए। 21 जुलाई की रात 12 बजे लिए गये नमूने का नतीजा चौंकाने वाला था, उस समय पौधे की प्रतिरोधक क्षमता काफी कम हो गयी थी, जबकि उस समय सर्वाधिक होनी चाहिए। इसके बाद यह क्षमता निरंतर घटती गई और सूर्य ग्रहण के दौरान [22 जुलाई को सुबह 5.25 से 6.27 बजे] के दौरान पौधे की प्रतिरोधक क्षमता लगातार घट-बढ़ रही थी। क्षमता में हो रहने निरंतर बदलाव का ग्राफ एक तरंग के रूप में था। यानी यह कभी बढ़ जाती थी तो तत्काल बाद घट जाती थी। यानी सूर्य ग्रहण के लगभग साढ़े पांच घंटा पूर्व पौधों ने किसी प्राकृतिक घटना की तरफ इशारा करना शुरू कर दिया। इस प्रयोग से साफ है कि समृद्ध प्रयोगशाला व अत्याधुनिक संसाधनों के उपयोग से किसी भी प्राकृतिक घटना की पूर्व सूचना और पहले भी प्राप्त की जा सकती है और दुनिया को बचाया जा सकता है।

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