शुक्रवार, 26 नवंबर 2010

कश्मीरी लोगो की भी सुनिए

कश्मीरी पंडितों की पीड़ा है कि अलगाववादियों और अरुंधती राय को सुनने के लिए तो सब तैयार रहते हैं, पर उनके दर्द को दबा दिया जाता है। इसी मुद्दे पर पनुन कश्मीर के संयोजक डॉ अग्निशेखर से वेद विलास उनियाल ने बात की :

-कश्मीरी पंडित क्या चाहते हैं?
आप देखेंगे कि कश्मीर के संदर्भ में इस समय चार विचारधाराएं हैं। एक वे लोग हैं, जो कश्मीर को भारत से अलग करना चाहते हैं। दूसरे वे हैं, जो इसे स्वतंत्र इसलामी राज्य (निजाम-ए-मुस्तफा) बनाना चाहते हैं। तीसरी धारणा यह है कि कश्मीर में अलग तरह की स्वायत्तता हो, संयुक्त प्रशासन हो, लो-मिलिटरी कंट्रोल हो। हम कश्मीरी घाटी के अंदर भारतीयों की तरह जीना-बसना चाहते हैं।

- लेकिन अरुंधती राय तो कश्मीर की दूसरी व्याख्या करती हैं?
कश्मीर अरुंधती के कहने से नहीं चलेगा। उन्हें इतिहास की जानकारी नहीं है। जानना हो, तो यह जानिए कि वह किन शातिर हाथों में खेल रही हैं।

- हाल में कश्मीर में जो स्थिति बिगड़ी, उसके जिम्मेदार कौन हैं?
जब भी स्थिति बिगड़ती है, उसके पीछे नकारा किस्म की राजनीति ही जिम्मेदार होती है। केंद्र आगे बढ़कर कोई ऐक्शन नहीं लेता। मीरवाइज और गिलानी जैसे लोग राष्ट्रद्रोह की बात करते हैं, सरकार खामोश रहती है। स्थिति मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के नियंत्रण में नहीं है। तय मानिए कि जिस तरह की स्थिति कश्मीर में हुई, कोई दूसरा राज्य होता, तो मुख्यमंत्री बदल जाता।

- भाजपा के साथ समान उद्देश्य के लिए साझा संघर्ष में क्या दिक्कतें हैं?
भाजपा बेशक अनुच्छेद 370 को खत्म करने की बात करती हो, लेकिन वह भी कई मामलों में दूसरे दलों से अलग नहीं है।

- ऐसा लगता है कि कश्मीरी पंडितोंकी घाटी में लौटने की लालसा खत्म हो गई?
यहूदियों ने इस्राइल को पाने के लिए 1,800 वर्षों तक संघर्ष किया। तिब्बत के लोग पिछले चालीस साल से यहां रहकर चीन से अपने हकों के लिए संघर्ष कर रहे हैं। क्या इस दौरान उन्होंने अपने दूसरे कामकाज, सामाजिक जीवन रोक दिया? आप कश्मीरी पंडितों के साथ केवल बीस साल में उदासीनता की बात करते हैं। कश्मीरी लोग पढ़े-लिखे, बौद्धिक हैं। हर पनुन कश्मीरी अपनी माटी से जुड़ने की लालसा लिए हुए है।

- मीरवाइज उमर फारूक के साथ चंडीगढ़ में हुए विरोध प्रदर्शन को देखते हुए क्या यह माना जाए कि कश्मीरी पंडित भी अब अपनी मांगों को लेकर उग्र हो रहे हैं? या यह हताशा का परिणाम है?
कश्मीरी पंडित लंबे समय तक शांत होकर अपने हकों के लिए लड़ते रहे हैं। लेकिन अब हम महसूस करते हैं कि देश के खिलाफ बोलने वालों का, जहां जिस तरह की स्थिति होगी, उसी शैली में विरोध किया जाएगा। जिन लोगों पर देशद्रोह का मुकदमा बनना चाहिए उन्हें नेता, समाजसेवी, विचारक कहा जा रहा है।

- ऐसे में समाधान की कोई राह नजर नहीं आती?
जी नहीं, पहले भी कह चुका हूं कि समाधान है। पर उसके लिए आप अपनी दृष्टि को व्यापक कीजिए। देश को तोड़ने और लोगों को गुमराह करनेवालों को तरजीह क्यों देनी चाहिए? इस पर नजरिया साफ होना चाहिए कि क्या देश के खिलाफ बोलने वालों को खुला घूमने दिया जाए। फिर आपको हमारे संघर्ष में सचाई दिखेगी।

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