![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjV4sO4ACKsq2gTa99DfYhCM1dZAcAvpJJAEoTk7Cv97PyrH8YdadqEm9JunG7WQjDr5Z3wot2IrZ-HhTZSk78GiRolzUMRwhK_xuEP04UuF-8f-nLhcfEf78HTHVo-BJ3U2mWzfIZKaik/s200/Tulasidas_2123.jpg)
तुलसी मीठे बचन ते सुख उपजत चहुँ ओर।
बसीकरन एक मंत्र है परिहरू बचन कठोर।।
बिना तेज के पुरुष की अवशि अवज्ञा होय।
बिना तेज के पुरुष की अवशि अवज्ञा होय।
आगि बुझे ज्यों राख की आप छुवै सब कोय।।
तुलसी साथी विपत्ति के विद्या विनय विवेक ।
तुलसी साथी विपत्ति के विद्या विनय विवेक ।
साहस सुकृति सुसत्यव्रत राम भरोसे एक।।
काम क्रोध मद लोभ की जौ लौं मन में खान।
काम क्रोध मद लोभ की जौ लौं मन में खान।
तौ लौं पण्डित मूरखौं तुलसी एक समान।।
आवत ही हरषै नहीं नैनन नहीं सनेह।
आवत ही हरषै नहीं नैनन नहीं सनेह।
तुलसी तहां न जाइये कंचन बरसे मेह।।
राम नाम मनि दीप धरू जीह देहरी द्वार।
राम नाम मनि दीप धरू जीह देहरी द्वार।
तुलसी भीतर बाहरौ जौ चाहसि उजियार।।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें